लेखक की कलम से

अपने जिस्म की खुशबू से …

लेकर आना हर रंगों की सुरभित सी सुरीली तान सपनों में ही ठहर गए हो रुबरु भी मिल जाना तुम।

पलाश की केसरिया छवि तुम उर में भरकर लाना अपने जिस्म की खुशबू से घर मेरा महकाना तुम।

होली कहाँ भाएगी तुम बिन सुनों सजन सलोने उदासीयों को अपनी चाह की सुगंध से चहकाना तुम।

जीवन के हर रंग है फ़िके कमी खटकती पल पल होली के बहाने आकर प्रीत के रंग, रंग जाना तुम।

अटकी थी सालों से तमन्ना अधरों की जुम्बिश पर फागुन की इस तप्त लहर में शीत टशर भर जाना तुम।

यादें वादे मैं न जानूँ प्रीत की एक सरगम पहचानूँ गुलाल की एक चुटकी लेकर मांग मेरी भर जाना तुम।

रिश्ता कहाँ ये कच्चा धागा गिरह बंधी जब दिल से दिल की आओ जो इस बार अगर उम्र भर नहीं जाना तुम।

 

©भावना जे. ठाकर

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