लेखक की कलम से
यह कयामती वक्त है…
एक अकेला और वीरान रास्ता
जो मेरे गांव को जाता है,
मैं जब भी उससे गुजरता हूं
तो मेरा बचपन याद आ जाता है।
मुझे महसूस हो रहा है मैं अकेला हूं
पर मैं अकेला नहीं हूं,
मैं बचपन की यादों को साथ लेकर
वीरान रास्ते से चला जा रहा हूँ।
कभी-कभी साया भी मेरा साथ देती है
और कभी वह अकेले चलती है
बहुत सूना और अकेला रास्ता है
साया बार-बार गुस्से से खौलती हुई
मेरा रास्ता रोकने के लिए आ जाती है
शायद वो अब आराम करना चाहती है
मैं थक कर जमीन पर गिर गया हूँ
उसने भी जमीन पर लेटकर
मेरे पैरों को अपने में समा लिया है
यह कयामती वक्त है
पर मेरे घर का रास्ता अभी बाकी है!
©अजय प्रताप तिवारी चंचल, इलाहाबाद