लेखक की कलम से

विष्णु प्रभाकर रचनावली का सन्निधि संगोष्ठी में हुआ लोकार्पण …

तेरह महीने बाद फिर शुरू हुआ सन्निधि संगोष्ठी का सिलसिला

विष्णु प्रभाकर रचनावली का लोकार्पण पिछले दिनों अतुल कुमार के आवास पर आयोजित सन्निधि संगोष्ठी में मौजूद साहित्यकारों और पत्रकारों ने किया। सन्निधि संगोष्ठी तेरह महीने से कोरो ना की वजह से स्थगित थी। काका कालेलकर और विष्णु प्रभाकर की स्मृति में सन्निधि संगोष्ठी पिछले आठ सालों से बिना क्रम टूटे लगातार आयोजित होती रही। यह संगोष्ठी खासकर नव रचनाकारों के प्रोत्साहन के लिए आयोजित की जाती रही है।  “विष्णु प्रभाकर  रचनावली” का संपादक उनके ज्येष्ठ पुत्र और साहित्यकार अतुल कुमार ने किया है।

इसका प्रकाशन साहित्य की सर्वोच्च संस्था  साहित्य अकादमी नई दिल्ली ने किया है। रचनावली में विष्णु प्रभाकर की विभिन्न विधाओं में लिखी प्रतिनिधि रचनाओं का संकलन किया गया है। विष्णु प्रभाकर को साहित्य अकादमी द्वारा उनकी कृति के लिए सम्मानित भी किया गया है। भारत सरकार द्वारा पद्मश्री से अलंकृत विष्णु प्रभाकर पर साहित्य अकादमी ने एक मोनोग्राफ भी प्रकाशित किया है। प्रकाश मनु द्वारा लिखे गए मॉनोग्राफ में विष्णु प्रभाकर की जीवन कथा और उनकी सृजन यात्रा के बारे में विस्तार से लिखा है।

प्रकाश मनु के मुताबिक विष्णु प्रभाकर हिंदी के उन बड़े और मूर्धन्य लेखकों में से हैं, जिनका व्यक्तित्व बहुत खुला, खरा और उदार था। सबको अपना, एकदम अपना बना लेने वाला। उनमें एक बड़प्पन था, सामने वाले की लघुता के बावजूद उसे अपने प्रेम से भर कर गले लगा लेने वाला। और वैसा ही खुलापन उनके साहित्य में है, जिसमें एक बेबनाव सादगी है और जीवन छल छल करता नजर आता है। विष्णु जी ने साहित्य की विविध विधाओं में लिखा और बहुत लिखा। बहुत से लेखक इस भ्रम में जीते हैं कि कम लिखने में ही गौरव है। पर विष्णुजी उनमें से नहीं थे। वे मसि जीवी थे। लिखना उनके लिए आनंद भी था और जरूरत भी। लिखने से जो कुछ मिलता, उसी से उनका जीवन निर्वाह भी होता था।

प्रेमचंद की तरह उनकी लेखनी क्षिप्रता से चलती थी और अपने आसपास के जीवन की विसंगतियां और विरोधाभासों से गुजरती हुई, जो कुछ सत्य है, शिव है, सुंदर है, उसके अंगीकार के लिए सदा आगे रहती थी। विष्णु प्रभाकर सारी तकलीफें झेलते हुए भी लेखक थे। वे सच में आपादमस्तक लेखक। लेखक के रूप में वे हमेशा समाज में सार्थक हस्तक्षेप करते रहे। यही वजह है कि उनकी कीर्ति स्वाभिमानी लेखक के रूप में ही रही। वे जो कहते थे,उसे कर दिखाते थे। वे केवल बातें करने वाले लेखक नहीं थे। उनके अपने जीवन मूल्य और आदर्श थे। वे गांधीवादी लेखक के रूप में भी शुमार किए जाते थे। उन्होंने लिखा तो बहुत पर वे बांग्ला के प्रसिद्ध साहित्यकार शरत चन्द्र के जीवनी लेखक के रूप में ही ज्यादा जाने जाते हैं। शरत चन्द्र पर विष्णु प्रभाकर की लिखी किताब “आवारा मसीहा” देश में बहुत प्रसिद्ध है।

तेरह महीने के बाद आयोजित सन्निधि संगोष्ठी में “विष्णु प्रभाकर रचनावली” के लोकार्पण के बाद काका कालेलकर की सूक्तियों पर आधारित एक पुस्तक ” आचार्य काका साहेब कालेलकर मधु संचय” का भी लोकार्पण किया गया। काका साहब की सूक्तियों का संकलन उनकी शिष्या कुसुम शाह ने किया है, जिसे विश्व समन्वय संघ ने प्रकाशित किया है। इनके अलावा सैनिकों के सराहनीय कार्यों पर आधारित केदारनाथ ‘ शब्द मसीहा ‘ लिखित एक उपन्यास ” हिम्मत वतन की हमसे है…” के साथ डॉ सुरेशचंद्र शर्मा की राम की शक्ति पूजा पर लिखित  पुस्तक और कुलीना कुमारी के संपादन में निकलने वाली मासिक पत्रिका “महिला अधिकार अभियान” के नए अंक का लोकार्पण किया गया।

इस मौके पर मौजूद रचनाकारों ने अपनी अपनी रचनाओं का पाठ कर संगोष्ठी को महत्वपूर्ण बनाया। जिन रचनाकारों ने अपनी रचनाओं का पाठ किया, इनमें अतुल कुमार,केदारनाथ शब्द मसीहा,अभिलाषा,रेणुका सिंह,कुलीना कुमारी, सदानंद कविश्वर, राजकुमार, सतीश खनगवाल, राजकुमार शर्मा, डॉ सुरेशचंद्र शर्मा, विनय विक्रम सिंह, प्रवीण त्रिपाठी, मीनू त्रिपाठी और अभिनव आचार्य के नाम शामिल हैं। संचालन प्रसून लतांत ने किया।

©प्रसून लतांत

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