लेखक की कलम से
ये सब मायाजाल
चारों तरफ घुटन
बंद हवा, उखड़ती साँसें
बाहर शोर झूठ, फरेब
छल का मायाजाल
उबड़खाबड़ पथरीले रास्ते
कौन अपना कौन पराया
भ्रम, सब अस्पष्ट
कोहरे से ढका
हताशा से भरा आदमी
ढूंढता कुछ पल
अपने लिए,
थक कर फिर चलने के लिए
एक सपना, एक याद , एक बात
जगा दे उसे, फिर से
उसकी देह की थकावट उतार
मन को पुकारे
कहाँ हो तुम
यहाँ क्यों नहीं
©सीमा गुप्ता, पंचकूला, हरियाणा