लेखक की कलम से
श्याम में मन लागा …
मेरे अपने रुठे तो जग रूठा,
जब मैं रूठी तो तू रूठा।
मेरी दुनिया बसी तेरे मन में,
मेरी रूह में बसती जान तेरी।
तेरे बिना मैं जी न सकूँ,
बिन तेरे लगे जग सूना सा।
दरश को तरसी हैं अंखिया,
नेह की तुम करो न बतिया।
मोहे तेरे प्रेम का रंग चढ़ा,
मोहे अपने रंग में रंग दो न।
मैं तेरे नेह रंग में रंग जाऊं,
मैं हर जनम तेरा नेह पाऊं।
मोहे श्याम रंग लागे प्यारो,
खुद से ज्यादा लागे प्यारो।
मैं हर पल तुझको ही सोचूँ,
मैं मंत्र मुग्ध होकर नाचूँ।
आज भी तू मेरा कल भी तू,
जीवन का हर पल भी तू।
©रंजना उपाध्याय, गाजियाबाद, (साहिबाबाद)