लेखक की कलम से

पहली बार दुनिया घर से ही लड़ रही है कोरोना से सबसे बड़ा युद्ध

मुंबई {हेमलता म्हस्के} । यह तो साफ हो गया है कि सारी दुनिया इन दिनों अपने इतिहास में आज तक की सबसे बड़ी लड़ाई लड़ रही है और वह भी किसी घरों से निकल कर रणक्षेत्र, मैदान या सड़कों पर नहीं बल्कि घरों में बैठकर लड़ रही है। किसी हथियार और बम से नहीं बल्कि अपने संयम और धैर्य के साथ लड़ रही है। हाथ से हाथ और कदम से कदम मिलाकर भी नहीं बल्कि एक दूसरे से अलग होकर अपने प्रिय से भी दूरी बनाकर कोरोना वायरस से लड़ रही है।

आज कोराना विषाणु ने पूरी दुनिया को अपनी चपेट में ले लिया है। कोई विषाणु कभी इतना खतरनाक भी हो सकता है इसे अभी तक जाना ही नहीं गया था। हर चीज मुमकिन है के जुमले उछालने वाले अपने देश में भी इस vishanu के भयावह नतीजों को देखते हुए सभी लोग सभी तरह के भेदभाव से ऊपर उठकर एकजुट हो गए हैं। भविष्य के खतरों से बचने के लिए केंद्र और राज्यों की सरकारें, संस्थाएं और पूरा चिकित्सा ढांचा और उससे जुड़े डॉक्टर और नर्स सहित सभी शक्तियां जुट गईं हैं। लोकतंत्र और खुली आजादी वाले अपने देश में सरकारों को लोगों को घरों में कैद करने के लिए सख्ती भी बरतनी पड़ रही है। पुलिस के साथ कलेक्टर तक को भी डंडे बरसाने तक के लिए मजबूर होना पड़ रहा है।

चीन से 2 महीने पहले शुरू हुए इस विषाणु के संक्रमण ने आज पूरी दुनिया को चपेट में ले लिया है। अमेरिका, फ्रांस, जर्मनी, इटली और इरान में मानवीय समाज भीषण त्रासदी का शिकार हो गया है। इलाज करने वाले डॉक्टरों की मौत हो रही है। मरने वालों को चार कंधे नहीं मिल रहे। उनका अंतिम संस्कार सेना कर रही है। जानकारों का कहना है कि चूकें हुईं हैं, तभी यह इतना फैल रहा है।

उल्लेखनीय है कि जिस चिकित्सक लो वेन लियांग ने पहली बार चीन में कोरोना की उपस्थिति जताई थी इसके लिए उनको अफवाह फैलाने के जुर्म में जेल में बंद करने के बजाय उनकी बात पर तवज्जो दी जाती और तत्परता से शुरू में ही कोशिश की जाती तो आज दुनिया को यह दिन देखने को विवश नहीं होना पड़ता और कोरोना के संक्रमण को विश्वव्यापी बनने से रोका जा सकता था।

दुनिया के समर्थ देश अपने संसाधनों और प्रयासों के जरिए कोरिना विषाणु से मुक्त होने के लिए अपनी तैयारी करने में कोई कसर नहीं छोड़ रहे हैं फिर भी उनके सामने चुनौतियां लगातार बढ़ती ही जा रही है। कोरोना विषाणु का चक्र टूट नहीं रहा। कोरोना के फैलने की तीव्रता और व्यापकता इतनी ज्यादा है कि इसके फैलने में ज्यादा देर नहीं लगती है। एक लाख लोगों के संक्रमण होने में 2 महीने लगे और इस संख्या को दोगुना होने में मात्र 11 दिन लगे और इसे तीन लाख तक पहुंचने में मात्र 4 दिन लगे। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि कोराना का संक्रमण कितनी तेजी से फैलता है। और सबसे बड़ा दुर्भाग्य यह है कि फिलहाल इसका कोई इलाज ही नहीं है लेकिन पिछले 2 महीने के अनुभव से यही सामने आया है कि कोरोना को पराजित करने का एकमात्र उपाय और विकल्प यही है कि सभी घरों में कैद हो जाएं और एक दूसरे से दूर रहें। भीड़ से बचें और उसका हिस्सा एकदम नहीं बनें। बिना हाथ धोए नाक और मुंह न छुएं।

यह उल्लेखनीय है कि पिछले 100 सालों के इतिहास में दुनियाभर में बनाए गए पार्क, सड़कें, मॉल, मंदिर, मस्जिद, तीर्थ और पर्यटन स्थल सब इस समय किसी काम के नहीं रह गए हैं। केवल अस्पताल, जिनकी संख्या भारत जैसे देश में तो कम है ही, समर्थ देशों में भी कम पड़ गए हैं। अब स्कूल, कॉलेज, पार्क आदि भी अस्पतालों में तब्दील किए जा रहे हैं। मंदिर-मस्जिदों में भी दुआएं कबूल नहीं हो रहीं हैं उल्टे विभिन्न धार्मिक संगठन अंधविश्वास की बातें फैलाने से बाज नहीं आ रहे हैं। उन्हें ऐसे समय में लोगों की मदद करनी चाहिए और तार्किक बातें ही करनी चाहिए।

कोरोना के पांच चरण होते हैं। अपने देश में कोरोना का दूसरा चरण शुरू हुआ है। देश के लोगों ने जनता कर्फ्यू का पालन कर कोरोना से लड़ने के लिए अपने सामूहिक संकल्प को प्रदर्शित किया है। और अब बढ़ती चुनौतियों को देखते हुए 3 सप्ताह तक के लिए पूरे देश में लॉकडाउन की घोषणा की गई है और इसके लिए सख्ती भी बरती जा रही है। कहा जा रहा है कि लॉकडाउन के कारण नौ लाख करोड़ का नुकसान हो सकता है और लोग अनुशासन में नहीं रहे और कोराना का चक्र नहीं टूटा तो यह नुकसान और भी ज्यादा हो सकता है और इसकी कीमत पूरे देश को चुकानी पड़ सकती है। देशभर में मरीजों का आंकड़ा लगातार बढ़ता जा रहा है अब तक अपने देश में 591 हैं और इनमें 40 लोग ठीक हो गए लेकिन 11 लोगों की मौत हो गई है।

सबसे अधिक प्रभावित महाराष्ट्र और केरल हैं महाराष्ट्र में 112 और केरल में 105 केस हुए हैं। इनके अलावा देश के आंध्रप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, चंडीगढ़, हरियाणा, दिल्ली, गुजरात, हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, कर्नाटक, मध्य प्रदेश, मणिपुर, ओडिशा, पुडुचेरी, पंजाब, राजस्थान, तमिलनाडु, उत्तरप्रदेश, उत्तराखंड और पश्चिम बंगाल आदि राज्यों और केंद्र प्रशासित प्रदेशों तक में फ़ैल गया है। आज भारत की ओर दुनिया कि नजर है कि बड़ी आबादी और कम संसाधनों वाले देश में कोरोना को पटकनी दी जाएगी। उम्मीद की जानी चाहिए कि कुछ पारंपरिक संस्कारों और अपनी सूझ-बूझ से भारत कोरोना पर वैसे ही पार पा सकता है जैसे इसके पहले चेचक, प्लेग और पोलियो से मुक्ति पाई है।

यह खुशी की बात है कि आज तक के सबसे बड़े युद्ध में जीत पक्की करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारें इस विषाणु के चक्र को तोड़ने के लिए सभी प्रयासों के साथ गरीब लोगों को मदद पहुंचाने की घोषणाएं कर रही हैं। सरकारों को यह देखना है कि समाज का बहुत बड़ा हिस्सा रोज कमाता है तब खाता है। उनके लिए मौजूदा समय की विपदा दोहरी मार ही है। ऐसे में जिस रफ्तार से धन पतियों की तिजोरियों के ताले खुलने चाहिए, नहीं खुल रहे हैं। देखना होगा कि खासकर दिहाड़ी मजदूर, पटरी वाले, खोमचे वाले और बेघर लोगों के लिए पूरी संवेदना से कितना प्रयास सरकारें कर सकती हैं। संपन्न और समृद्ध लोगों को भी आगे आना चाहिए ताकि कोई घर में ही भूखा ना मर जाए। ऐसे समय में लोग घरों में हैं और खाने-पीने की दुकानें भी बंद हैं तो सबसे ज्यादा संकट बेजुबानों के सामने भी आ गया है। हमें उनकी ओर भी ध्यान देना है।

झुग्गियों में पीने के लिए पानी नहीं है तो हाथ किससे से धोएं और इतने पैसे नहीं हैं कि सैनिटाइजर और मॉक्स जैसी चीजें खरीद सकें। ये सब भी अब आम लोगों की पहुंच से बाहर हो गए हैं। विपत्ति के समय में कुछ लोग लाभ लूटने में भी मशगूल है उन पर भी करवाई होनी चाहिए। सरकारों और समाजसेवी संगठनों को पूरी संवेदना से अपना कर्तव्य समझते हुए यह सुनिश्चित करना चाहिए ताकि आम लोगों की जरूरत की वस्तुओं की कमी नहीं हो और समय पर उनके पास पहुंचे।

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