टेक्नोलॉजी और जीवन…
टेक्नोलॉजी ने जीवन को
कितना बदल दिया।
सुबह से रात तक के काम को,
कितना सरल कर दिया।
जिंदगी गैस से,
खाना पकाती है।
माइक्रो-इंडक्शन से,
पल में खाना गरम कर जाती है।
अगर न होती…… टेक्नोलॉजी
जिंदगी उपले थापती।
जंगल से लकड़ियां लाती।
मुश्किलों से आग जलाती।
घंटों बैठकर, फिर खाना पकाती।
टेक्नोलॉजी ने जीवन को,
कितना बदल दिया।
पानी-बिजली घर- घर आ गया।
जिंदगी में, रंग भरने
रेडियो- टीवी -सिनेमा आ गया।
चक्की पीसती थी जो जिंदगी,
टेक्नोलॉजी से,
वहीं आटा थैली में आ गया।
पैदल चलते पांवों को,
टेक्नोलॉजी ने पहिया लगा दिया।
हाथों की मथनी,
मसालों की कूटन को,
ग्राइंडर ने सांस दिला दिया।
टेक्नोलॉजी ने जीवन को,
कितना बदल दिया।
सुबह से लेकर शाम तक के,
काम को सरल कर दिया।
जिंदगी तकनीक से,
कितनी तेज भागी।
चौबीस घंटों को भी,
जिंदगी के लिए,
कम करा दिया।
जिंदगी मशीन हो गई।
आसपास वालों ने,
यह महसूस करा दिया।
हर इन्सान को……..
हालात से…………
लड़ता हुआ ……….
रोबोट बना दिया…..
टेक्नोलॉजी ने जीवन को,
कितना बदल दिया।
मशीनें काम करतीं रहीं,
इन्सान के साथ -साथ,
और काम इतना बढ़ा दिया।
दिल और दिमाग को,
क्या कहें………….,!!!
जिंदगी पर,
प्रश्नचिन्ह ?????????
थमा दिया।
टेक्नोलॉजी ने जीवन को,
कितना बदल दिया।
सुबह से शाम तक के काम को,
कितना सरल कर दिया।
खुद से लड़ते -लड़ते,
हाथ में स्मार्टफोन आ गया।
किसे जा के कहता,
इनसान दिल की बात,
जिंदगी के सवालों पर,
मल्टीपल च्वाइस छा गया।
टेक्नोलॉजी ने हाथों को,
सरलता तो दी।
लेकिन दिलो-दिमाग में,
जटिलता का घर बना दिया…
©प्रीति शर्मा “असीम”, सोलन हिमाचल प्रदेश