लेखक की कलम से

काव्यसृजन के शतकीय काव्य गोष्ठी में दिल्ली इकाई का उत्कृष्ट आयोजन …

रा. सा. सा. व सां. संस्था काव्यसृजन की १००वीं काव्यगोष्ठी साहित्यिक पखवाड़े के रूप में मनाई जा रही है। जिसमें लगातार प्रतिदिन सायं काल साढ़े पाँच बजे से विभिन्न आंचलिक/भारतीय बोली-भाषा की काव्य-गोष्ठियां आयोजित की जा रही हैं इसी क्रम में १८ अगस्त २०२१ दिन बुधवार को काव्यसृजन दिल्ली इकाई के संयोजन में हिन्दी, अवधी, ब्रज भाषा के गीतों से ओत-प्रोत आयोजन मध्यप्रदेश के प्रसिद्ध विद्वान आदरणीय विजय तिवारी ‘किसलय’ की अध्यक्षता में अपने गौरव को प्राप्त करने में सफल रही। आयोजन की दिव्यता मुख्य अतिथि सर्राफ सागर “उदयपुरी” की पूर्णकालिक उपस्थिति से अनंत गुना बढ़ गई।

दिल्ली के प्रसिद्ध कवि व दिल्ली इकाई के अध्यक्ष पंकज तिवारी ने उत्कृष्ट संचालन कर सबको आह्लादित कर दिया। संस्थापक अध्यक्ष शिवप्रकाश जौनपुरी ने इस गौरवमय आयोजन का सुन्दर संयोजन किया। आयोजन की शुरुआत कुमार राजहंस मिश्र व कुमारी शिवानी मिश्रा ने अपने सुमधुर स्वर में संगीतमय सरस्वती वंदना से की। इसके बाद पटल पर उपस्थित कवि, कवयित्री अपनी रचनाओं से पटल को सजाते हुए एक से बढ़कर एक बेहतरीन प्रस्तुति दी। हिसार (हरियाणा) से युवा कवयित्री सामाजिक कार्यकर्ता सीमा हृदया ने

“दिल, जिगर, जान, कुर्बान की शौर्य गाथा थी,

मन अंतरण में संचरण सिर्फ भारत माता थी”,

जैसे शानदार कविता से देश-प्रेम की भावना जाग्रत करने में सफल रहीं वहीं कोलकाता से युवा कवि, बेहतरीन प्रस्तुति के धनी, श्रृंगार को रचने वाले कवि सूरज स्वरांश ने

“जब जब अमराई में कोयल कुहू कुहू कर गाती है।

सच कहता हूं तब तब मुझको याद तुम्हारी आती है।” गीत से पटल पर गज़ब का शमां बांधने में सफल रहे आभासीय पटल होने के बावजूद तालियों का साथ उनके सफलता की परिचायक हुई। कार्यक्रम को अंतरराष्ट्रीय स्तर तक पहुंचाने का श्रेय लिए काव्यसृजन महिला मंच की अंतरराष्ट्रीय अध्यक्षा अनुपम रमेश किंगर, बहरीन से जुड़ी एवं स्वतंत्रता दिवस के दिन लोगों के हल्के वर्ताव और रवैया पर बहुत ही गहरा प्रहार किया जो दिल को छू गया और साथ ही कई सारे प्रश्न भी हमारे सामने छोड़कर गईं। गाजियाबाद उ.प्र. से कार्यक्रम की उपलब्धि रहीं वरिष्ठ कवयित्री एवं सेवानिवृत्त अध्यापिका मंजुला श्रीवास्तवा ने

“जो हुए कुर्बान अपनी माटी की खातिर,

जिन सपनों को ले सो गए अपनी आंखों में” जैसे प्रस्तुति से देश के बीर शहीदों के प्रति नमन करते हुए, उनके कुर्बानियों को गिनाते हुए श्रोताओं के आंखों को नम कर गईं।

“बनकर के दोस्त, दोस्त को छलता हुआ मिला

इंसान कितने चेहरे बदलता हुआ मिला”

जैसे गीत से आज के मानवीय दुर्भावनाओं पर आघात करने वाली युवा कवयित्री आराधना सिंह ‘अनु’ के गीत की एक-एक पंक्तियां सशक्त और मझी हुई रहीं। अपने बहुत ही व्यस्त समय से काव्यसृजन दिल्ली इकाई के विशेष आग्रह पर, विशेष स्नेह बरसाते हुए झारखंड से कार्यक्रम से जुड़ने वाले प्रो. सुबोध कुमार झा की प्रस्तुति भी विशेष रही उनकी शैली बिल्कुल ही जुदा रही लोग फिदा हो गये उनके गीत और प्रस्तुति पर।

कार्यक्रम में अगले कवयित्री के रूप में वन्दना खरे, म.प्र से जुड़ी उनकी रचना

“सारी उम्र गुजारी हमने,

तुमको अपना कहते-कहते..” जिंदगी के उहापोह और संघर्षों को उजागर करती हुई लगी। वाराणसी उत्तर प्रदेश से जुड़े युवा कवि एवं भूगोल के प्रवक्ता विकास ‘विदीप्त’ जी

“यदा कदा मेरे कमरे में आ जाते थे बाबूजी,

बात बात में बड़ी बात बतला जाते थे बाबूजी”

जैसे मर्मस्पर्शी रचना से सभी के जीवन में बापू के अहमियत को बड़े ही सलीके से प्रस्तुत करने के प्रयास में सफल हुए हैं, इस गीत की प्रस्तुति भी शानदार रही। नई दिल्ली से आमंत्रित युवा एवं गंभीर विषयों की कवयित्री रजनी श्रीवास्तव ने जैसे ही अपने परिचय में एक मुक्तक पढ़ा तालियों की बाढ़ सी आ गई उसके बाद उन्होंने

“जरा सी चोट पर हमने बिखर जाना नहीं सीखा

किया है सामना मुश्किल का डर जाना नहीं सीखा

बढ़ाये हैं कदम जब भी सफ़लता पायी है हमने

कभी मंजिल से पहले ही ठहर जाना नहीं सीखा”

जैसे रचनाओं से मंच को और समृद्ध बनाने में पूर्णतः सफल रहीं। पूनम शर्मा जो प्रयागराज से जुड़ी,

“जो हो मन में बात, बेवाक़ कहना वो बात प्रिये ।

रखना ना कोई मन में अपने राज प्रिये”

जैसे कविता से बेबाकीपना पर अपनी बात रखीं।काव्यसृजन परिवार से अंजनी कुमार द्विवेदी रसिक, मनिंदर सरकार, श्रीधर मिश्र, शिवप्रकाश जौनपुरी, हौंसिला प्रसाद अन्वेशी, सौरभ दत्ता जयंत, आनंद पांडेय केवल, मोतीलाल बजाज, मनीष पाठक, रेखा पांडेय आदि ने भी हिन्दी, भोजपुरी अवधी, ब्रज भाषा से ओतप्रोत सुंदर गीतों की अद्भुत प्रस्तुति कर काव्यसृजन के पटल पर अपनी मीठी तथा शौर्य गाथाओं से परिपूर्ण करते इस आयोजन को चिर स्मरणीय बना दिया।

मुख्य अतिथि आदरणीय सर्राफ उदयपुरी सागर ने आयोजन की उत्कृष्ट विवेचना की और संस्था के कार्य की मुक्त कंठ से सराहना की। आदरणीय विजय तिवारी ने सभी कवियों की प्रस्तुति व रचना पर संक्षिप्त प्रकाश डालते हुए सभी का उत्साह वर्धन करते अपना अद्भुत काव्य पाठ किया।

अंत में संस्था उपकोषाध्यक्ष आदरणीय सौरभ दत्ता जयंत ने सभी कवि-कवयित्रियों व श्रोताओं का आभार प्रकट किया और निवेदन किया कि हमारे इस साहित्यिक शब्दार्चन के साथ ही भविष्य के विविध आयोजनों मे आप सबका स्नेह और सहयोग सदैव अपेक्षित है।

काव्य सृजन संस्था ने अपने इस आयोजन में हर दिन बंगाली, मराठी, राजस्थानी, भोजपुरी, लोकगीत, राष्ट्रीय हिन्दी गीत, बहुभाषी काव्य गोष्ठी, पुस्तक चर्चा, सम्मान समारोह आदि विभिन्न कार्यक्रमों को इस पखवाड़ा आयोजन में सुंदर ढंग से पिरोते इसे सामजिक समरसता के राष्ट्रीय सामाजिक सरोकारों से जोड़ते सार्थक स्वरूप प्रदान किया हैं, जिसके लिए काव्य सृजन अपनी एक विशिष्ट पहचान बनाते प्रगति पथ पर अग्रसर हैं..।

 

 

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