लेखक की कलम से

मृत्यु….

बोधकथा

जब कोई इंसान इस दुनिया से विदा हो जाता है तो उसके कपड़े, उसका बिस्तर, उसके द्वारा इस्तेमाल किया हुआ सभी सामान उसी के साथ तुरन्त घर से निकाल दिये जाते है।

पर कभी कोई उसके द्वारा कमाया गया धन-दौलत. प्रोपर्टी, उसका घर, उसका पैसा, उसके जवाहरात आदि, इन सबको क्यों नही छोड़ते?

बल्कि उन चीजों को तो ढूंढते है, मरे हुए के हाथ, पैर, गले से खोज-खोजकर, खींच-खींचकर निकालकर चुपके से जेब में डाल लेते हैं, वसीयत की तो मरने वाले से ज्यादा चिंता करते हैं।

इससे पता चलता है कि आखिर रिश्ता किन चीजों से था।

इसलिए पुण्य परोपकार और नाम की कमाई करो।

इसे कोई ले नहीं सकता, चुरा नहीं सकता। ये कमाई तो ऐसी है, जो जाने वाले के साथ ही जाती है।

हाड़ जले ज्यूँ लाकड़ी, केस जले ज्यूँ घास।

कंचन जैसी काया जल गई, कोई न आयो पास।

जगत में कैसा नाता रे।

©संकलन – संदीप चोपड़े, सहायक संचालक विधि प्रकोष्ठ, बिलासपुर, छत्तीसगढ़

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