लेखक की कलम से

सिर्फ मुद्दा न रहे … जागरुकता जरुरी …

निर्भया और प्रियंका रेड्डी के बीच ना जाने कितने ही महिलाओं की अस्मिता के साथ बर्बर व्यवहार हुआ…जिसकी गिनती करने बैठे तो शायद आपकी और हमारी रूह कांप उठेगी….आकंड़ों के खेल में फंसें तो भारत के हालात इतने बद्तर हो गए है कि लोग अब बेटी इसलिए नहीं पैदा करना चाहते क्योंकि वो अपनी बेटी को इस हालत में नहीं देखना चाहते….लोगों ने मोमबत्तियां जलाई, जूलुस निकाला, सरकार ने फास्ट ट्रैक कोर्ट बनाया कड़े से कड़ा कानून बनाया बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ का नारा दिया….कन्या धन योजना जैसी कई योजनाओं की शुरुआत की… महिलाओं ने इन योजनाओं का बढ़ चढ़ कर लाभ लिया.. सरकार की इन योजनाओं ने लड़की के आंखों में भी सपने भरे… लेकिन कहां सिर्फ 10 से 25 फीसदी धरातल पर और 100 से भी ज्यादा फीसदी कागज़ों पर अगर कहीं ये जागरूकता दर्ज नहीं हुई तो वो था समाज का कुठिंत दिमाग…जो पहले से और भयावह हो गया है… और इस कुठिंत दिमाग की भी अपनी एक कीमत है…

सोचिए अगर ये ना होते तो टीवी चैनल की टीआरपी कैसे बढ़ती… अगर ये कुठिंत दिमाग नहीं होते तो सरकार अपनी पीठ कैसे थपथपाती… ये कुंठित दिमाग नहीं होते तो एनजीओ की रोजी रोटी कैसे चलती…..आज का दौर सिर्फ और सिर्फ बाज़ारीकरण का है… हम सोशल मीडिया से लेकर हर जगह भेड़ की तरह चलते है… विचारधारा ने अपनी जगह हैषटैग को दे दी है … सारी क्रांती हमें ट्विटर और फेसबुक पर देखने को मिलती है…. और सबसे आसान काम होता है आलोचना करना… वर्तमान समय के समाज को सुधारना हो सकता है हमारे बस में ना हो लेकिन क्या हम आने वाली पीढ़ी को और कुंठित करने का काम नहीं कर रहे है…. मेरी बेटी मेरा अभिमान फेसबुक का स्लोगन और ना जाने कितने की डीपी पर लगने वाला ये टैग कभी सोचा आपने इससे आप क्या साबित करते है… पहला ये कि आप खुद अंदर से कुंठित है और आपको एक ऐसे टैग की जरूरत पड़ रही है जो ये साबित करे की बेटी आपका अभिमान है….ये मेरी बेटी नहीं मेरा बेटा है….

मेरी बेटी किसी बेटे से कम है क्या मुझे समझ नहीं आता बेटी का परिचय बेटे की काबलियत से ही तुलना करके क्यों होती है….हमें औरत होने के नाते समानता का अधिकार चाहिए… लेकिन हम एक लाइन में नहीं लगना चाहते अब इसे आप privilege या फिर कमजोरी की श्रेणी में रख सकते है लेकिन कहीं से भी समानता की श्रेणी में तो नहीं आता….और बस यहीं एक कदम हमें उस समान अधिकार उस समान भाव से कोसो दूर कर देती है… इसका दूसरा पक्ष क्या है हमने देखने की जरूरत कभी नहीं समझी … एक ही क्लास में लड़का और लड़की दोनों पढ़ते हैं… लेकिन वो लड़की है इसलिए वो पहले जाएगी वो लड़की है इसलिए वो मॉनिटर बनेगी…. वो लड़की है इसलिए उससे क्लास के टीचर गलती होने पर भी प्यार से बात करेगें लेकिन वहीं गलती अगर लड़का कर दे तो उसके साथ ऐसे व्यवहार करेंगे जैसे वो कोई अपराधी हो…..और बस इसी जगह लडकी के अंदर से समान भाव से ऊपर की भावना आ जाती है और लड़का खुद को अपमानित समझने लगता है.. हीन भावना से ग्रस्त हो जाता है….

मेरी बेटी मेरा अभिमान जैसे स्लोगन हमें अच्छे लगते है लेकिन कभी आपने सोचा उसी उम्र का लड़का क्या सोचता होगा इस बात को पढ़कर….. इन योजनाओं या इन स्लोगन में कोई बुराई नहीं है लड़कियों को उत्साहित करने के लिए जरूरी भी है … लेकिन साथ ही माता पिता होने के नाते एक टीचर होने के नाते हमें लड़के को भी समझाना होगा… कि आखिर इन सब की जरूरत समाज को क्यों है… और यकीन मानिए आज का कोई भी बच्चा हमारे इतिहास को नहीं जानता और जब तक वो जानने की उम्र में पहुंचता है उसका मानसिक विकास एक विचारधारा को लेकर बन चुका होता है….

मेरी अपनी राय है कि अगर समाज में ऐसे अपराधों को रोकना है तो जड़ पर काम किया जाए उस मानसिकता पर काम किया जाए जो ऐसे अपराधों को जन्म दे रही है… लड़कियों को मौका दिजिए उनके हुनर पर ना कि उनकी शारिरिक संरचना रंग रूप और क्लास पर.. नौकरी हो या कोई भी क्षेत्र हो आज की दोयम दर्जे की विचारधारा क्या है किसी से छीपी नहीं है और इसका शिकार लड़कियां भी हो रही है और लड़के भी जबकी गलती इन दोनो की नहीं है… तो बेहतर है पुलिस सरकार और लोगो पर उंगली उठाने से पहले हम अपनी मानसिकता को बदले अपने ऊपर भरोसा रखे और वाकई समानता का अधिकार दे…

मेरा मानना है आज के दौर में लड़की किसी भी तरह से लड़को से कम नहीं है और ना आज के लड़के लड़कियों पर निर्भर है इन्हें पता है इनका टारगेट क्या है और कैसे हासिल करना है… बस समाज में फैली ये असमानता इनको कुंठित कर देती है औऱ फिर जन्म लेते है ऐसे अपराध…..जिसका शिकार कई बार दोनो पक्ष बनते है… कानून का गलत फायदा उठाने वाली तादाद कम है लेकिन उसका असर दोनो पक्षों पर पड़ता है…. वैसे भी एक औरत होने के नाते मैं चाहती हूं कि हमें समान अधिकार दो लेकिन उस अधिकार के पीछे दया या फिर फायदा उठाने वाली भावना को दूर रखों…..और एक बेटे की मां होने के नाते मैं अपने बेटे को ये जरूर सिखाती हूं कि वो संवेदनशील बने चीजों को समझे और एक दूसरे के काम का सम्मान करें… ना की दया दिखाएं या फिर फायदा उठाएं….

मेरे इस पोस्ट से अगर किसी को आपत्ती हो तो माफी चाहती हूं पर कड़वा है लेकिन सच यहीं है कि मानसिकता बदलिए लड़कियों को मजबूत बनाइए औऱ लड़को को संवेदनशील जितनी इज्जत और सम्मान की जरूरत लड़कियों को है उतनी ही इज्जत और सम्मान लड़कों को भी दिजिए…. बेहतर होने का फर्क करना बंद किजिए और ये समझाइएं दोनो इस समाज के लिए महत्वपूर्ण है दोनो एक दूसरे के पूरक है ना कोई आगे और ना कोई पीछे…..

 

©तूलिका, सिंह, बनारस, यूपी

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