लेखक की कलम से

संवाद मृत्यु से …

 

मृत्यु… उठो तुम्हें बेहद काम हैआज।

 

मैं ..हड़बड़ा कर  इस बार क्या लेने आई हो( थोड़ा घबराहट के साथ)

मृत्यु.. तुम्हारी जननी को

मैं.. हाथ जोड़कर गिड़गिड़ा उठती उससे पहले

माँ मुस्कुराते हुए  उसके साथ चल दी।

मैं चीख़ती रही पहली बार था कि माँ मेरी बात नही सुन रही थी

कोई अफ़सोस नही और न दर्द

मैं.. पल भर रुक जाओ न माँ के सँग तुम??

 

मृत्यु ..मैं समय नही देती मेरी यही खासियत हैं वसु

तुम इंसान समय  व्यर्थ करने में यकीन करते हो इसलिए रोते भी हो।मुझे सारे काम समय पर पूरे करने होते हैं।

अगर मैं रुक गई तो नवसृजन रुक जाएगा।

किसी और जननी को तुम्हारी जननी की आवश्यकता है।

मैं रोक नही सकी और वह रुकी नही माँ ख़ुश थी ।शायद इस दुनियाँ से जाने की खुशी थी उन्हें, मोह माया से मुक्त।

रात गुजर रही थी..

आँसुओं से भीगी थी कि हमख्याल हाज़िर था सामने।

एक नम मुस्कान ओढ़े शांत गाम्भीर्य आवरण के साथ।पता है क़भी क़भी वह समझ के परे हो जाता है संबोधन हीन हम्मम

वसु ए वसु

मैं.. हाँजी

इतनी उदासी अच्छी नही

मैं.. हम्म

फिऱ.. कुछ नही

एक अप्रत्याशित प्रश्न

कितने साल की हो?

मैं.. बहुत बड़ी भी,और बहुत छोटी भी।

सुनो”दोनो बनी रहना”?

हाँजी

 

“पर एक बात जरूर कहूँगा की हर व्यक्ति का अस्तित्व अकेला नही है

पहले माँ बाप से मिला सन्सार ऒर फिर संसार जन्मा हमसे तो हम ही तो केंद्र है न

और तुममें तो वही है अस्तित्व में

बस ख़ुद को खोने मत देना

वह बोलती ही तो नही है बस

वह तुममें ही”

 

सुनो वसु

 

“उनके आसपास का माहौल ही तो तुम सबको इस तरह सन्सार में रखे हुए है तो

क्यों स्वार्थी बने

ऐसे महान रूह को किसी और वसु को जन्म देने फिर आने दो न दुनिया मे कहीं”

 

और पता है

 

बड़े मन से देखो उनको

समझ आएगी मेरी बात

की वो फिर माँ बंनने आने गयी है

एक औऱ पिढ़ी  कर्जदार बनेगी

तो सुनो उठो और अपनी माँ को शान के साथ गर्व से उन्हें विदाई दो

 

सुनो न वसु

 

बस इस मन से की वे सुकून पाए

कहते है बेटियों की प्रार्थना करने से शांति आती है

जितना जिया भरपूर जिया है बस माँ बन तुम भी उनको जीना  और ख़ुद के लिए ख़्याल रखना समझी न

और मैं सिर्फ़ हम्मम  हाँजी कहते हुए माँ के नाम का दिया  प्रज्वलित करने के लिए हमख़याल का हाथ पकड़ उठ खड़ी हुई हूँ। गायत्री मंत्र के साथ

बेशक़ जिंदगी में संवाद मायने रखते हैं

तसल्लिया ऊर्जा देती हैं

और कोई हाथ थाम  उपरोक्त संवाद से सुकूँ दे तो एक पीड़ा जो ताउम्र साथ रहने वाली होती हैं तो उसके साथ उस पीड़ा को अपने अंतर्मन को आत्मसात कर जीने की इच्छा प्रबल हो ही जाती हैं

हमख़याल शुक्रिया????

बेशक़ जिंदगी चली जाती हैं

यादें धड़कनों में कैद निरंतर चलती रहती हैं

हैं न?

 

©सुरेखा अग्रवाल, लखनऊ               

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