लेखक की कलम से

एकांत वास में रहकर देश और दुनिया को बचाएं …

धैर्य और ध्यान हमारी संस्कृति का हिस्सा है। प्राचीनकाल में साधु, संत अक्सर एकांतवास में रहकर जग के कल्याण के लिए ईश्वर से प्रार्थना करते थे। आज हमारे देश के प्रत्येक नागरिक को एक संत की भांति कुछ समय के लिए जीवनयापन करना है। इसमें बहुत घरबराने की बात नहीं है और न ही विचलित होने की।

ध्यान से मस्तिष्क मजबूत होता है और धैर्य मनुष्य को हमेशा विजयी बनाता है। कुछ लोग इस एकांतवास की तुलना जेल से कर रहे पर ध्यान रहे कि जेल में स्वतंत्रता नहीं होती पर आपके घर में आप स्वतंत्र हैं। आप जो भी चाहें स्वेच्छा से कर सकते हैं। आप अपने माता-पिता की सेवा कर सकते हैं, अपने बच्चों के साथ समय व्यतीत कर सकते हैं। अक्सर कामकाजी महिलाओं की शिकायत रहती है कि वो खुद को समय नहीं दे पातीं वो भी अब अपनी मर्जी का काम करने के लिए स्वतंत्र हैं।

कुछ समय इस एकांतवास में रहकर हम देश और दुनिया को बचा सकते हैं। पूरी दुनिया इस समय बहुत ही विकट संकट में फंसी है, इस संकट को हम एकजुट न होकर ही खत्म कर सकते हैं। विश्व बंधुत्व का संदेश देने वाले भारत को आज एकांतवास का संदेश देना है।

किसी भी प्रकार की झूठी अफवाह फैलाने से बचना भी जरूरी है।

वर्तमान स्थिति चिंतनीय है पर भयभीत होकर नहीं बल्कि भीड़ से हटकर ही हम सुरक्षित रह सकते हैं और खुद सुरक्षित रहकर ही दूसरों को सुरक्षित रख सकते हैं।

©वाणी तिवारी, प्रयागराज, उत्तरप्रदेश

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