लेखक की कलम से

जिंदगी के चौराहे पर……

जिन्दगी के चौराहे पर खड़ा होकर कर रहा विचार।
पीछे जो तय किया सफर अब उसका ही कर रहा हिसाब।।

खट्टी मीठी इस सफर में कभी चढ़ाव तो कभी उतार।
इस अनुभव को सहेज सवार कर आगे बढ़ने को तैयार।।

साथ मिला जो अपनो का उन सबका करता आभार।
बिछड़ गए जो अपने मुझसे उनके लिए बस अश्रु धार।।

इस चौराहे राह चार हैं सफर को तो मुख्य राह।
बांकी दो बचे राह तो सहायक होंगे अपने आप।।

मुख्य धरा में चलकर ही अगली सफर को तैयार।
सफर के इस नये अनुभव को हासिल करने को तैयार।।

दाएं बाएं के जो राह बने हैं जिसमे मेले परिवार समाज का साथ।
मुख्य राह पर संघर्ष करते पहुचें अपने मंजिल खास।।

संघर्ष कठिन है मानव जीवन इसका हमको है आभास।
संकल्प हृदय में लिए हुए कर जाना है इसको पर।।

कल जब हम हों न हों नाम हमारा हो साकार।
जब कोई चौराहे खड़ा हो याद करे अपना पद चाप।।

उस चोराहे दिशा इंगित हो जो बताए हर एक राह।
जगह जगह शिलालेख लगा हो जो राही को दिखये राह।।

©कमलेश झा, दिल्ली

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