लेखक की कलम से

हे बसुंधरा तुम्हें नमन …

 

टुकड़े टुकड़े में बंटा

आसमान और धरा

लाभ और लोभ पर

उतर गया वो खरा

बांट छांट छोड़ दो

तोड़ दो अब परंपरा

नेक और विवेक लिए

बना रहा बुद्धू निरा!

 

©लता प्रासर, पटना, बिहार                

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