लेखक की कलम से

बिटिया की विदाई …

 

कन्यादान पश्चात

जब,,, उठने वाली थी डोली!

कलेजे के टुकड़े से,

मां यह बोली…

 

लाडली मेरी, सुन मेरा कहना

मिलजुल कर ससुराल में रहना।

पर…  इतना ध्यान, तूं भी रखना

….उतरे न कभी, स्वाभिमान का गहना।

 

करना समझौता,

झुक भी जाना।

पर… परिस्थितियों से

….. हार न जाना।

 

प्रेम जिधर हो,

खट पट भी होगी।

पर… अत्याचार सह

…. बनना न रोगी।

 

खुश रहना पिया घर

कर रहे हैं “विदाई”

पर… मायके भी है तेरा,

…. तूं नहीं है पराई।

…. तूं नहीं है पराई।।

 

©अंजु गुप्ता                                                                        

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