लेखक की कलम से

मोर मनके परेवना …

 

कोयली कस कुहकत जीवरा के मैना न |

महकत अमरैय्या गोंदा तय फूले जोहि ||

 

मोर मन म बसे हिरदे के परेवना ओ |

संगी घलो हर झूमत नजरे नजर म न ||

 

लाली कस परसा दिखत रुपे ह तोरे ओ |

दिखत रिकबिक घलो टिकली सिंगारे ह ||

 

तोरेच आगोरा म जीवरा ह संगवारी न |

कलपत हिरदे हावे रतिहा आगोरा ओ ||

 

नइ मिले थोड़कुन आरो ह तोरेच जोहि |

मन मे पीरा घलो मन कुमलाये भारी न ||

 

तिहि मोर परेवना अस सुवा तय मोर घलो |

आसा मोर मनके घलो हिरदे के जीवरा ओ ||

 

दगा झन दे मोला बगिया के गोंदा ओ |

पीरा हिरदे म हावे घलो मन ह भारी न ||

 

तेहर तो जल्दी आजा मोर तय परेवना ओ |

तोरेच आगोरा म हिरदे हर जुड़ावत हावे ||

©योगेश ध्रुव ‘भीम’, धमतरी

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