सुखद अनुभूति …
कान्हा तेरे दीदार की प्रथम अनुभूति
तेरा खुद में होने का वो,
पहला एहसास होने लगा है।!
अब तो मुझे दुनिया की
मानो हर खुशी मिल गई।
तेरा मेरे अंतर्मन मे साक्षात्कार
तेरी लौ का अद्भुत चमत्कार
महसूस करने लगी हूँ।
तेरा दिल भी अब धडकने लगा है,
तेरी मूरत मे हलचल अहसास दिखने लगा
मेरी साँसों से तेरी साँसें जुड़ने लगी
तेरी बंसी की धुन अंतर्मन मे बजने लगी है।
तेरा मुझमें होने का एहसास,
अब तो दिखने लगा है।
कान्हा मय जीवन बन गया।
मिलेगी एक नई पहचान तुझ से,
होगा मेरा भी नया जन्म तुझमें ।
बदलेंगे मेरे हाव भाव अब तो,
अपने गात को छोड़ तेरी व्याकरण मे
समा जाऊँ साँवरे।
आँखों से खुशी को!
छलकने से कैसे रोकूंगी?
उस पल मैं खुद को कैसे संभालूंगी?
जब तू मेरी साँसों में होगा।
सम्पूर्ण तो मैं तुझी से हों जाऊँ गी !
तू मेरा भगवन मै तेरी
मैं खुद को कैसे हो जाउंगी
जब तक मेरी लौ तुझ मे विलीन हो जाए गी।
©आकांक्षा रूपा चचरा, कटक, ओडिसा