लेखक की कलम से

रिश्तों की अहमियत …

 

रिश्तों की अहमियत

ठीक से अब जानी।

जब दूरियां

बन गई मजबूरियां

ग़म की जरा सी आहट पर

सरक आते थे करीब अपनों के साये।

इत्मीनान के अहसास,

सुकून के आँसू

सावन की बूंदे बन,

टपक जाते थे

अपनों के कंधों पर।

 

वक़्त वक़्त की बात है।

बुरे से बुरे सपनों में भी,

ये तो कभी सोचा ना था

कि अपनों को छूने मात्र से,

मिल जायेगा बेपनाह दर्द

वो दर्द अगर उनकी देह में है।

बांटने से बटता था दुःख कभी,

वो जमाना कोई और था।

अब तो गुणा होने का चलन है।

 

रिश्तों के अनमोल अहसासों को,

नजदीकियों के अभावों को,

आओ संजो लें

यादों के पिटारों में।

रिश्तों की डगर पर,

भावनाओं की धुंध में,

यही तो सेतू बन,

मिटायेंगे दिल से दिल की दूरियां।

 

©ओम सुयन, अहमदाबाद, गुजरात          

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