लेखक की कलम से

भविष्य खतरे में …

विधा :- प्रास- अनुप्रास दोहे

 

1-नौनिहाल इस देश के, चले पतन की राह।

जान और परिवार की, तजकर वह परवाह।।

 

2-तजकर वह परवाह को, होते हैं बर्बाद।

मदिरा पीकर के करें, सब से वाद-विवाद।।

 

3-सब से वाद-विवाद कर, झगडा़ लेते मोल।

गवाँ व्यर्थ में ही रहे, जीवन यह अनमोल।।

 

4- जीवन यह अनमोल है, चढ़ा नशे की भेंट।

नायक हो या नायिका, रहा सभी को मेंट।।

 

5-रहा सभी को मेंट यह, समझ सभी लो बात!

त्यागो पश्चिम-सभ्यता, बदल रहे हालात।।

 

6-बदल रहे हालात अब, गिरें अर्श से फर्श।

राम-कृष्ण से अब नहीं ,लोगों के आदर्श।।

 

7-लोगों के आदर्श हैं, नौटंकी के साज।

चोरों -भ्रष्टों का हुआ , अब समाज पर राज।।

 

8-अब समाज पर राज कर, करें कमाई खूब।

पैसा सिर चढ़ बोलता, रहे नशे में डूब।।

 

9-रहे नशे में डूब ये, घूमें नंग- धड़ंग।

अभिनेत्री पीछे नहीं,फिरें खोल कर अंग।।

 

10-फिरे खोल कर अंग ये, करती हैं गुमराह।

अगर नहीं अब चेतते , निकलेगी फिर आह!

 

 

©रागिनी गर्ग, रामपुर, यूपी

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