इसी बीच . . .
इस बीच मैं नहीं लिख पाई कोई कविता, न रंग पाई कोई सफेद पटल
इस बीच बच्चों को बताया कि
किस बैंक में है पैसा
किस में है लॉकर
कितने हैं जेवरात
गुड़िया तेरे लिए और
मेरे गुड्डे मेरी बहू के लिए
इस बीच यह भी बताया कि
तुम्हारे लिए कुछ रकम जोड़ी है
तुम्हारे भविष्य के लिए
फंड में होंगे कुछ, कुछ मिलेंगे
मेरी सेवाओं के बदले सरकार से
इसी बीच यह भी कि
तुम दोनों खयाल रखना पापा का
वो कहते फिरते कि तेरी माँ को
सिखाया है खाना बनाना पर
नहीं आता उन्हें ढंग से चाय बनाना भी
और यह भी कि
बड़ी बहन छोटे भाई की माँ होती है
छोटा भाई बहन का पिता भी होता है
थाम कर चलना ऐसे हाथ कि
बीच में पकड़ा है मेरा हाथ
इस बीच जताई कुछ अधूरी ख्वाहिशें
बिखरी पड़ी हैं कुछ कविताएं
इधर-उधर समेट कर छपवा देना कभी और
मेरी कल्पनाओं की जीती जागती
तस्वीरों को दिखा देना सबको
इस बीच मृत्यु को सजग बनाती मैं
नहीं लिख पा रही कोई ऐसा पत्र
जो प्रेमपत्र हो
बांट रही हूं जिम्मेदारी पति-प्रेमी की
बच्चों को
इसी बीच तैरती हैं खबरें कि
लोग निकल आए हैं सड़कों पर
जैसे लॉक डाउन हो गया हो खत्म और
हमने पा ली हो विजय मृत्यु पर
इसी बीच तड़पते हुए पैरों के छालों के साथ
मीलों चल जाता है काफ़िला
मर जाता है कोई अस्पताल में तो कोई सड़क पर
इसी बीच
मौतों की बढ़ती संख्या पर
अपने संचित धन और इच्छाओं पर हंसी भी आती है
इस बीच सबके जीने की दुआओं के साथ
सलाम करती हूं उनको जो लगे हैं
जी जान से जानों को बचाने
इसी बीच भगवान मुस्करा उठते हैं टीवी पर
मोहक मुस्कान के मोहजाल में फंसे
निश्चिंत लोगों का चेहरा घूम जाता है
मेरे सामने
कि इसी बीच अपने अंतिम दिनों में
गुमसुम हुआ सा मेरा चक्रधारी आता है पास
उसको देख
लाखों करोड़ों वलय में घूमता मेरा विचलित मन
कहीं नहीं रुकता
रुकता है तो…
परमाणु, अणु, जीवाणु, विषाणु और कीटाणुओं के बीच
नए जन्म की आतुरता पर
रोने की पहली मधुर आवाज़ पर
इसी बीच…………
©पूनम ज़ाकिर, आगरा, उत्तरप्रदेश