लौटा दो मेरा गांव …
मां के हाथों की रोटी जब,
चूल्हे पर सिकती थी।
छाछ राबड़ी प्याज के संग,
तब भूख कहां टिकती थी ?
उस खाने के आगे फीके,
पड़ते भाजी पाव
लौटा दोss मेरा गांव …१
रोज सवेरे मीठी मीठी ,
देता मुर्गा बांग ।
हम तो सरपट लेटे रहते,
जैसे पी हो भांग ।।
आंख हमारी तब खुलती ,
जब देता सूरज ताव
लौटा दोss मेरा गांव..२
पोखर और कुओं पर जाकर,
भर कर मटके लाते।
बैठ पीठ पर हम भैंसो के,
पानी उन्हे पिलाते ।।
वही सवारी लगती प्यारी,
करते थे हम चाव
लौटा दोss मेरा गांव..३
गिल्ली डंडा और कबड्डी,
छुपा छुपी फुटबाल।
सभी मुहल्लो में सजते थे,
दिन वे बड़े कमाल ।।
मिलजुल कर हम खेला करते,
बिसरा कर टकराव
लौटा दोss मेरा गांव..४
रोज रात को छत आंगन में,
लगता मधुर बिछौना।
खुश हो जाते जब मिल जाता,
तकिये का एक कोना ।।
तारों के सागर में घूमे,
लेकर मन की नाव
लौटा दोss मेरा गांव..५
घर घर में गीतों की बानी,
उर आनंद जगाती।
जब मोहल्ले की सभी औरतें,
मधुर स्वर में गाती ।।
एक दूजी को गले लगाती
तज कर के बैर भाव
लौटा दोss मेरा गांव ..६
तीज त्योहारों पर डलते थे,
जब पेडों पर झूले।
भले जवानी बीत गई ,
पर हम अब तक न भूले ।।
यादों के आकाश में उड़ते,
नहीं जमीं पर पांव
लौटा दोss मेरा गांव..७
रिश्तों को सब भूल चुके हैं,
गायब दादी – नानी।
बच्चे चैटिंग सीख रहे हैं ,
भूले किस्से कहानी ।।
संस्कार सब गायब है,
और मन में है भटकाव
लौटा दोss मेरा गांव..८
मुझसे सुंदर बचपन छीना ,
ये शैतान जवानी ।
निकल पड़ा मै किसी शहर को,
खोजने दाना पानी ।।
काम के खातिर दर दर भटकू ,
कोई न देता भाव
लौटा दोss मेरा गांव…९
मेरे संग संग दिन भी लद गए,
बड़ पीपल की छांव के ।
जिसके नीचे खेला करते,
बच्चे सारे गांव के ।।
याद पुराने दिन की करके,
मन करता पछताव
लौटा दोss मेरा गांव….१०
©रमाकांत सहल, झुंझुनूं, राजस्थान