लेखक की कलम से
ऐसा है होली का त्यौहार …
दिल से सारे बैर भुला दे
रूठों को जो फिर से मिला दे
ऐसा है ये होली का त्योहार
फाल्गुन की अब हुई अगुवाई
पीली सरसों भी मुसकाई
कली कली ने ली अंगडाई
अवनी ने फिर से किया ,है नव ऋंगार
वृंदावन में धूम मची है
फूलों से नगरी सजी है
भांग कि मस्ती खूब चढ़ी है
छाया हुआ है कैसा ये खुमार
गोकुल में आए गिरधारी
राधा को पिचकारी मारी
भीग गई अंगिया और सारी
चारों तरफ है कान्हा का प्यार
अपने पराए का भेद मिटाऐ
सबके दिल को जो हर्षाऐ
दिल से दिल को जो मिलवाऐ
ऐसा ही है होली का त्यौहार ।।
©गार्गी कौशिक, गाज़ियाबाद