लेखक की कलम से

तुम्हारी परिणीता…

 

अगर तुम राम बन जाओ

        तो मैं भी सीता बन जाऊंगी

इस जीवन में ही नहीं

       जन्मोजन्म तुम्हारी परिणीता कहलाऊंगी

मात- पिता कुल धर्म सहित

मानव धर्म का रखो ध्यान

विचलित ना होना सतपथ से

संकट आयें चाहे जितनी महान

अगर तुम मर्यादा पुरुषोत्तम बन जाओ

         तो मैं भी  शीलवती बन जाऊंगी

इस जीवन में ही नहीं

       जन्मोजन्म तुम्हारी परिणीता कहलाऊंगी

छल कपट स्वार्थ असत्य से

भर गया है यह संसार रूपी प्याला

निडर हो इस हलाहल को पीकर

बहाओ निःस्वार्थ अमृत की धारा

अगर तुम शिव शंकर बन जाओ

         तो मैं भी शैलसुता गौरी बन जाऊंगी

इस जन्म में ही नहीं

       जन्मो जन्म परिणीता कह लाऊंगी

द्रोपदी नित्य खतरे में

उसकी लाज का चीरहरण हो रहा

मानव- मानव की हत्या करके

इस सृष्टि के नियमों को तोड़ रहा

अगर तुम वासुदेव बन जाओ

        तो मैं भी लक्ष्मी बन जाऊंगी

इस जन्म में ही नहीं

       जन्मोजन्म तुम्हारी परिणीता कहलाऊंगी

समय का पहिया घूम रहा

अनैतिकता का है आतंक

अधर्म ने  डेरा है डाला

इस चक्रव्यूह में फंसकर

यदि तुम अधर्मी बन गए

       तो मैं भी कुलटा कहलाऊंगी

इस जन्म में ही नहीं

जन्मोजन्म तुम्हारी परिणीता कहलाऊंगी।

@डॉ. शालिनी शुक्ला, हजरतगंज, लखनऊ

परिचय- एमफिल, हिन्दी में पीएचडी, चित्रा मुदगल के उपन्यासों में नारी चित्रण, विविध आयाम पुस्तक प्रकाशित, लखनऊ विश्वविद्यालय से संबद्ध महाविद्यालय में अध्ययापन।

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