लेखक की कलम से
सुधियों का वृत्त …
एक जल सतह सदृश
शांत ही तो था … मेरा चित्त
फिर ये कौन उर्मी बनकर आया है?
जिसने एक अस्तित्व रच दिया है ..
मेरे आस – पास।
एक सहज छुअन से …
शांत जल में बनता वर्तुल
साक्ष्य है न अभिव्यक्ति का!!!
छुअन हाथ के पोर की रहे,
या सुधियों की.. एक वृत्त आकार पाता है।
और वह वर्तुल … घेरे रहता है सतत,,
ह्रदय को अनुभूति की परिधि से।
यह मात्र स्पर्श नहीं …
तल तक चलायमान ज्वार है।।।
हिलोर लेते शब्द आतुर हैं
लहर बनकर उछलने को,
सुखद अनुमोदन की प्रतिक्षा में,
निज को समेटे एक वर्तुल में
फेरे किया करते।
उस एक छुअन का,
एक आल्हादित स्पर्श का प्रतीक्षारत
ये जल समान मन।
©ललिता गहलोत, सूरत
परिचय:- अंग्रेजी में एमए, रुचि – लिखना, पढ़ना.