लेखक की कलम से
नीली चप्पल वाली लड़की …
दो टुकड़ा आसमान था मेरे भी पास
कंटीली पगडंडियों पर आरामदेह अहसास
उम्मीदों की धूप लिए मैं काटती रही जड़, घास
घात लगाए बैठा था तब उत्पीड़न का इतिहास
देह जला दी मुँह अंधेरे हुआ न था उजास
बे रीढ़, बे ज़ुबान तुम करने लगे अट्टहास
ख़त्म कर दिए मेरे वजूद के सब नामोनिशान
पड़ा रह गया ज़मीन पे मेरा दो टुकड़ा आसमान
©वैशाली सोनवलकर, मुंबई