लेखक की कलम से

रंगों का त्योहार कहीं बदरंग न हो जाए …

 

सोचती हूं कभी समय था कि किसी पर्व को लेकर मन में एक उत्साह, एक उमंग,एक अलग ही चाव होता था। आज तो जैसे त्योहारों के कुछ मायने ही नहीं रहे। यूं तो सभी त्योहार अपना अपना महत्व रखते हुए कुछ ना कुछ इतिहास समेटे,और कुछ ना कुछ अपने मूल्य समेटे होते हैं।

 

लेकिन उन सभी त्योहारों में होली का त्यौहार एक ऐसा त्यौहार है जिसमें ज्यादा कुछ नियम कायदे नहीं होते, यह तो सिर्फ परस्पर प्रेम और सौहार्द का प्रतीक है।इस दिन सभी आपसी मनमुटाव, दुश्मनी भुलाकर एक दूसरे को प्यार व स्नेह के गुलाल में रंगते हैं।

 

पर कुछ वर्षों से होली के त्यौहार का प्रारूप काफी बदल गया है, इसमें वह प्रेम की महक और मिठास नहीं रही। कुछ लोग त्योहार की आड़ में इस पवित्र रंगों के त्योहार को बदनाम करते हैं, रिश्तो की मर्यादा तोड़ते हैं, गाली गलौज करते हैं।

मेरा मानना है कि हर त्यौहार  हमारी आने वाली पीढ़ी को दिया गया, हमारी तरफ से एक अनमोल उपहार है,इसलिए हमें अपने त्योहारों की गरिमा को बनाए रखना होगा।

 

हमें अपने बच्चों को त्योहारों के मूल्य समझाने होंगे ताकि आने वाली पीढ़ी भी इन पर्वों की अनमोल धरोहरों को ऐसे ही आगे  बढ़ाती रहे और पीढ़ी दर पीढ़ी त्योहारों की गरिमा यूं ही बनी रहे। हम सबको मिलकर इस पवित्र त्यौहार के रंगों को यूं ही सजाना होगा.…… नैतिक मूल्यों के साथ इस त्यौहार को आगे बढ़ाएं।

 

क्योंकि होली ही एकमात्र ऐसा पर्व है जहां छोटा बड़ा अमीर गरीब कोई मायने नहीं रखता मायने रखता है तो सिर्फ प्रेम और सौहार्द…

 

©ऋतु गुप्ता, खुर्जा, बुलंदशहर, उत्तर प्रदेश           

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