सच नहीं मरता …
गोली मार कर
बहा सकते हो खून
हत्या कर सकते हो
आदमी की
सच बोलता है जो
किन्तु
मार नही सकते
आदमी की अभिव्यक्ति को
उन शब्दों को
जो खून में सनकर
दर्द से मुखर हो
‘आवाम’ की आवाज़ बन
अमर हो जाते हैं
इतिहास के पन्नों में
जीवंत दस्तावेज की मानिंदj
कि मरकर भी छोड़ जाते हैं
एक चिंगारी
एक आग
जो धधकती रहती है
उन सौ करोड़ दिलों में
ज्वालामुखी बनने तक
माँगती है परिवर्तन
क्रांति के जयघोष के साथ
जो कहती है
कि उस जीवन का
कोई वज़ूद नही
जो घुटनों पर रेंगता है
समझौतों पर चलता है
जीवन के मायने बदल
‘सच’ चाहे
कितना भी कड़वा क्यो न हो
खुल कर बोलो
‘हल्ले’ की तरह
कि याद रखो
महज़ गोली मार देने से
इंसान को
इंसान मरता है
सच नहीं मरता ।
©डॉ रत्ना शर्मा, जयपुर
परिचय: प्राध्यापक महारानी गायत्री देवी विद्यालय जयपुर, जयपुर दूरदर्शन में उद्घोषिका और साक्षात्कारकर्ता के रूप में कार्य करने का अनुभव, राष्ट्रीय और स्थानीय समाचार पत्रों में नियमित प्रकाशन, कविताओं पर पीएचडी, दो संग्रह प्रकाशित।