लेखक की कलम से

गद्दार…

लघु कथा

वैश्विक महामारी के इस दौर में, एक देश में, महामारी के अलावा चुनौतियों का दौर भी चला रहा था। जानी और अनजानी चुनौतियां से लड़ते हुए वहां के प्रधान सेवक, जनता की सेवा में लगे थे। अपनी गलतियों से सीखते हुए, वे नि:स्वार्थ जनता की सेवा में लगे थे। वे देश ही नहीं, बल्कि विश्व में भी सबका कल्याण चाहते हुए फैसले लेते थे…पर उसी देश के विपक्ष के कुछ वरिष्ठ नेता इस मुश्किल घड़ी में भी अपना उल्लू साधने में लगे थे। देश की ही छवि, संप्रभुता को ताक पर रखकर, वे किसी तरह से प्रधान सेवक को बदनाम करने की होड़ में लगे रहते थे।

उनकी सोच थी कि विश्व में अपने ही देश को बदनाम करने का काम जानबूझ कर किया जाए ताकि सत्ता हासिल हो और सरकार पर दबाव बनाया जा सके। आम जनता में असंतोष की भावना को भड़काने का काम वे बखूबी कर रहे थे। पर वो ये भूल गए थे कि विश्व के लोग उनके देश का मज़ाक बनाने से पहले हैरत भरी निगाहों से उन्हें ही देख रहे थे कि कैसे कुछ लोग अपने निजी स्वार्थ के लिए इस हद तक जा सकते हैं ?  वो अंजाने में अपना ही मज़ाक बनवा रहे थे और उसी में खुश हो रहे थे‌। देश से ही गद्दारी करने को वो निष्पक्ष बात करना और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का नाम दे रहे थे क्योंकि वो विश्व का बड़ा लोकतंत्र देश था।

 

©कामनी गुप्ता, जम्मू                                                      

 

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