लेखक की कलम से

पत्रकारिता एक मिशन या मीडिया हाउस का एंटरटेनमंट …

कहने को तो मीडिया देश का चौथा लोकतांत्रिक स्तंभ है। डेमोक्रेसी पिलर है। विशेष तौर पर पिछले कई दशकों से अब यह जैसे डेमोक्रेसी और अपने असल लक्ष्य जैसे विस्तारवाद का विरोध, राष्ट्र निर्माण – उत्थान, जनहित, जन जागरण आदि को भूल के कुछ अलग ही कर रहा है।

मीडिया का काम जनता के हित की बात रखने का था उनके जीवन से जुड़ी समस्याओं को सबके सामने लाना था। और सरकार यदि मार्ग भटक रही है तो अपनी लेखनी द्वारा उसको सही दिशा दिखाना और बेसहारा की तरफ प्रकाश डालने का काम था।

अब जैसे मीडिया को भी ग्लैमर की चमक-धमक ने आकर्षित कर लिया है। अब मीडिया किसी पेज 3 सेलेब्रिटी के आगे कुछ नहीं दिखाता। बल्कि भ्रमित करने वाले स्टिंग, बनावटी खबरें और अजीबोगरीब वायरल वीडियोज़ का केंद्र बन के रह गया है।

वैसे तो देश में मीडिया का प्रसार व्यापक पैमाने पर हुआ है, लेकिन साथ ही नैतिक और चारित्रिक पतन भी हुआ है। अब मार्केट, एडवरटाइजमेंट, पैसे व सनसनी ने पत्रकारिता में जगह लेली है और मानवता, निष्पक्षता व सही मुद्दों की बात करें तो कुछ है ही नहीं।

एक समय जब हमारा देश आज़ाद नहीं हुआ था उस वक़्त इन अखबारों ने ही लोकतंत्र की आवाज़ को बुलंद कर क्रांति की मशाल जलाई थी।

आज के न्यूज चैनलों के हालातों को ही देख लो शोर मचाना, अभिनेता, अभिनेत्री, चीन, ड्रग्स, कभी कंगना तो कभी रिया, कभी स्वरा तो कभी किया इसके अलावा अब कोई सटीक और सही मुद्दा इनके पास है ही नहीं।

अब ऐसा प्रतीत होता है के पत्रकारिता, पत्रकारिता नहीं चाटुकारिता बन के रह गई है। इस समय में ऐसा लगता है कोई निष्पक्ष नहीं है सब किसी ना किसी एक के पक्ष में बैठे वकील है जो जनता रूपी जज को भ्रमित करना चाहते हैं।

अब तो जैसे आंखों देखा भी भरोसा नहीं किया जा सकता। किस घटना को किस एंगल से दिखाया जा रहा है वो सही भी है या सिर्फ किसी विशेष पक्ष को भड़काने या समर्थन करने के लिए दिखाया जा रहा है यह तो ईश्वर ही जान सकता है आम जनता तो बेचारी पार्टियों पर अंधा विश्वास कर बैठी है।

इस समय तो वक़्त की यही मांग है के अपना निर्णय किसी न्यूज चैनल पर बताए जानकारी विवरण या विश्लेषण के आधार पर ना लेकर अपने स्वयं के अनुभव के आधार पर लें।हालाकि मेरा कहना यह नहीं है के आप किसी भी मीडिया चैनल पर भरोसा ना करें अपितु यह बताना है के अपनी आंखे खोल कर सही से जांच परख कर किसी घटना विशेष का पूरा अवलोकन कर के ही सत्य तक पहुंच सकते हैं।

आजकल तो डिजिटल क्रांति ने हम सबको अपनी बात रखने के लिए प्लेटफॉर्म दिए हुए हैं यदि आपको लगता है के लोकतंत्र का चौथा स्तंभ आपके हक की बात करने में नाकाम है तो आप खुद अपनी आवाज़ बुलंद कीजिए अपने हक की लड़ाई में पहला कदम आप खुद रखिए।

 

©परिधि रघुवंशी, मुंबई

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