लेखक की कलम से

काँच सा रिश्ता

हम दोनों अपना जीवन अपने तरीके से नहीं जी पाये

उम्र के अर्धांश पर अपने-अपने तरीके से

जीवन जीने की जद्दोजहद में

गहरी खामोशी एक छीजते हुए रिश्ते का जाल बुनती रही

न तुम अपने तरीके जी पाये और न मैं

क्योंकि दोनों ओर एक पहरे की पदचाप

निरंतर होती रही |

कभी चिल्लाहट ने दखल देने की कोशिश की

पर वहां भी खामोशी ही अंततः जीतती गई

जीवन का फलसफ़ा

बस किताबों में बंद रहा

उसके पन्ने जर्जर होते रहे

जर्दी उसके पृष्ठों पर छाती रही

और हम रिश्ते को पीले पत्ते सा

पेड़ से टूटकर गिरते हुए देखते रहे |

क्या इस रिश्ते की परिणति यही होती है?

जोड़ने की कोशिश में सब टूटता जाता है

काँच के बर्तनों की तरह |

हाँ स्त्री -पुरुष के रिश्ते

शीशे की तरह ही होते हैं

जो पूरी तरह भले न टूटे

पर कोई कोना तो चटक ही जाता है|

विश्वासी एक्का बटईकेला, सरगुजा

संक्षिप्त परिचय- सन् 2017 में नेशनल बुक ट्रस्ट, नई दिल्ली से कहानी पुस्तिका ‘कजरी’ प्रकाशित | 2018 में कविता संग्रह ‘लछमनिया का चूल्हा’ प्रकाशित। उत्कृष्ट लेखन के लिए 2018 में हिंदी साहित्य सम्मेलन छत्तीसगढ़ द्वारा ‘पुनर्नवा’ पुरस्कार | साहित्य अकादमी दिल्ली में काव्यपाठ, आकाशवाणी अम्बिकापुर से समय-समय पर रचना पाठ साथ ही विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं मे कविता – कहानी और आलेख प्रकाशित | वर्तमान में शासकीय राजमोहिनी देवी कन्या स्नातकोत्तर महाविद्यालय अम्बिकापुर, छत्तीसगढ़ में सहायक प्राध्यापक के पद पर कार्यरत |

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