लेखक की कलम से

क्या यही है इंसानियत …

कैसे और कितना बार भर गया मन बताएंगे

किस तरह हर बार नारी शक्ति का मान का हक़ आजमाएंगे

मर्दं उस काले कपड़े पर खून के दाग़ की तरह बेदाग़ छवि दर्शायेंगे

नारी उस सफ़ेद कपड़े पर लगे पानी के दाग़ को भी

एक गुनाह की सफ़ाई देते गुनहगार ठहराएंगे

क्या यहीं है इंसानियत हर बार परीक्षा में

नारी को सशक्त साबित करने को कहलवाएंगे

मर्दं का दिल भर जाता है बस उसका एक ही शास्त्र

उसके चरित्र पर कीचड़ उझालते नज़र आएंगे

हिम्मत या अधिकार इतना कहां से मिला जो

लक्ष्य हमें बना कर ख़ुद को पीड़ित साबित कर नज़र आयेंगे,

शिद्दत इतनी होती तो और उन मर्दं में इतनी इंसानियत होती तो

आज जो एक दूसरे को दोषारोपण का खेल खेलते नज़र ऐसे ना आयेंगे

झेल मैं ही रहा था ये सही गलत साबित करते क्यूं जायेंगे

कब तक हां कब तक ये सवाल खड़े करते जायेंगे

किस घर की हूं मैं, मैं काफ़ी नहीं अकेली श्रेणी से

शेरनी बन बारातियों के साथ चलती आयेंगे

और तुम बारातियों के साथ मुझ अकेली को लेकर

बाखूबी अपना मर्दं सा एहसास करवाते जायेंगे

और हम अपने सपनों को हकीकत से रूबरू भी

तुम्हारी अनुमती से अपने पर हम एहसास करते जायेंगे

अपने हिस्से की खुशी की किसी के बात की

गहराइयों की आने जाने की खाने पीने की काम काज की

ये हक़ जताते की अनुमति हम नहीं मांगती नज़र आयेंगे

ये एहसान हम पर ना करना इस इज्ज़त को खुद्दारी का नाम

न देना पर इस भुलेखे में ज़िंदा ना रहना जो तुम

कहते रहोगे वही करते नज़र आयेंगे

क्या अनुमति के परचम लहराने की

कोशिश की बारी तुम्हारी कभी आयेगी?

क्या कश्ती पर स्वार एक ही स्वारी नज़र आयेगी

रही बात हाथ बटाने की तो किसी दिन

कुछ किया तो हज़ार दफा दोहरायोगे

रही बात औरत की हक़ीक़त ये उसका काम है

ये कह कर ख़ुद का और बड़प्पन दिखाते नज़र आयेगी

आज तक की हिमाकत यहीं है या नमक थोड़ा कम पड़ जाए ,

क्या सीखा हैं तुमने ? पानी में भी देरी हो जाए तो चीखते ही नजर आयेंगे

क्या किसी भी किताब या ग्रंथ में लिखा है की

औरत ही किस्मत में ये काम

डाक घर की टिकट से छपे क्यूं नज़र आयेंगे ?

अगर आज कोई मर्द का काम खाने बनाने (शेफ) का भी है तो

घर आकर ये भी सुना देंगे वहां भी ये करूं

घर आकर भी आराम नहीं यही कहते नज़र आयेंगे?

आज मर्द और औरत की बात करे तो देखा जाए

मर्द से ज्यादा भर्तियां औरतों की होती है ,

क्यू क्यूंकि भगवान ने भी उनको सहने की ताक़त

ज्यादा मालामाल प्रभु ने नेमत भक्षी है

खूनी खेल से हर महीने खेलती

कोई एक हफ़्ता खून से तरबतर होता तो

मर ही जाता

पर प्रभु में मां बनने की शक्ति हर क्षमता औरत को नवाजी

पर काम में घर का बाहर का सब काम करती नजर आती जायेगी

एक दिन की छुट्टी नहीं अगर इतवार है तो

सबका है पर उससे उम्मीद और दिन से ज्यादा हैं

अगर कभी बाहर डिनर के लिए ले जाएं तो

एहसान हद से ज्यादा जताते नज़र आयेंगे?

क्या सब रोक टोक सही गलत संस्कार बलिदान

घर घरस्थी का दामोदर मैने अपने घुघट में निशानों को छुपाते नज़र आयेंगे

कहा लिखा है ये के हम औरते ही झुकती नज़र आयेंगी

ये दुनियां से सवाल है कब तक अगर इतना ही

मर्दं को मर्दानगी की याकि है तो अकेले अपने वश का नाम बढ़ायेगे

वो साबित करने की नौबत महसूस करते जायेंगे

गुरूर इस अहम से मुद्दा बन मर्दं और

औरत के बीच बराबरी का जवाब नही मलाल बनते रहा जायेंगे

तेरी मेरी ज़िन्दगी में पहल करने के कारण रद्द करते ही जायेंगे

बस अब तो समझ लो क्या उच्च गुणवत्ता ही करते रह जायेंगे

इज़्ज़त और प्यार से बराबरी के हकदार समझ कर प्रेम से ज़िन्दगी बिताएगे …

 

©हर्षिता दावर, नई दिल्ली

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