लेखक की कलम से

सुनसान ये सड़क है …

आंधियां चलती रहे , आता रहे तूफान ।

तू हिम्मत न हारना ,मेरे दिल-ए-नादान ।।

माना कि अकेला है , कोई साथ न तेरे ।

तू मान ले होता है , जब आये इम्तिहान ।।

है कैद दर- ओ-दीवार , आगे का रास्ता ।

रख हौसला खुद में , है जिंदगी आसान ।।

ऊबकर जिंदगी से , न जाना कभी बाहर ।

सुनसान ये सड़क है ,जंगल सी बियावान।।

घर मे अकेले बैठकर , कुछ शौक पाल ले ।

तू खुद से कर बातें ,और खुद से ही पहचान ।।

लगता है कई बार , कोई आहट है दर में ।

 खुद से खुद को मिला , बिखेर दे मुस्कान ।।

©डॉ. सुनीता मिश्रा, बिलासपुर, छत्तीसगढ़   

Back to top button