लेखक की कलम से

मुझे ऐसा कुछ करने के लिए मत कहो …

 

वह लड़की ऐसा कुछ नहीं करना चाहती

जिससे उसे खुद के नजरों में ही छोटा होना पड़े …

 

विवेक का डंक बहुत परेशान करता है

लहू, नीले लहू झरते है

दुखों की धारा गालों पर उतरती है …

 

फिर भी उसे बहुत कुछ करना पड़ता है

लाल पंजे के साथ, आंखों में आग लिए लोमड़ी सामने खड़ी …

 

गर आप थोड़ा चाहते हो पाना, आपको देने पड़े सब कुछ,

अलिखित समझौते का करना होगा भुगतान

एक बार घटपर्णी के घट में प्रवेश किया तो

कौन निकल सकता है …

 

सारा मवाद, रस, खून निचोड़ा जाएगा और बेजान शरीर को कूड़ेदान में फेंक दिया जाएगा …

 

हैरानी की बात है, फिर भी हम जीवित रहते हैं।

 

©मनीषा कर बागची                           

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