लेखक की कलम से
जो मिला है पूरा कहां है…
इस धरती पर जितनी हवा है, पर्याप्त नहीं है
सब कहाँ सांस ले पाते हैं।
जितना अन्न उगाता है किसान वही कहाँ पर्याप्त है
कितने लोग हैं जो भूखे हैं
बारिश का पानी है बेतरह बरसता है महीनों रात दिन
फिर भी हाहाकार मचा है पीने को पानी नहीं है।
सबके चेहरे मंद मंद मुस्काते हैं, लाख मुसीबतों के दिनों में भी
आँखों से लहू टपके तब भी
प्रेम पर लाखों करोड़ों कविताएँ हैं जो तितलियों की तरह मंडराती है सबके ऊपर
प्रेम का सोता है जो दिन रात बहता है
लेकिन सबके जीवन में कहाँ है इस सुख की पगडण्डी
जीवन भरपूर है पर मौत के लिए सभी प्रतीक्षारत हैं।
एक एक कदम आगे बढ़ते हुए ….