लेखक की कलम से
महाक्रांति…..
महाक्रांति की वलय अग्नि में जो प्राण है
तू है, यहां
यही नवल
यही धवल
सृजन का प्रमाण है।
नीले नभ के सिंहासन पर
पीकर गरल
सूर्य रहे अटल चाहे प्रतिकूल हो पटल
गूंज उठे सूर्य का स्वर
हर-हर-हर
शांति सरोवर
अनुभव कहे…
तुच्छ भोग
बने रोग
चेतना का योग
तो केवल संघर्ष है
आज कोई पीड़ी नहीं, असीम हर्ष है,
महाक्रांति की विवेक अग्नि ही उत्कर्ष है।
नदियां, झरने, समीर
चाहे घोर तिमिर
बहे न कभी, तुच्छ नीर
मन में ही तो वह आंच है
करे सदैव जो जांच है
अपना जीवन दर्शन तो यही है
बंधन ही मुक्ति का द्वार है।
जहां सृजन अपार है।
जहां सृजन ही आधार है।
©दोलन राय, औरंगाबाद, महाराष्ट्र