लेखक की कलम से

हे वरदायनी …

हे वरदायनी वरदान दे,

सद्कर्म पथ नीत चलू मैं,

अंधकार को तु दूर कर दे,

ज्ञान की ऐसा भंडार दे ||

 

धवल वस्त्र पद्माशन स्वेत,

स्वेत मन को ये रंग दे मेरे,

चाहे धरा नभ जल में रहूँ,

स्वांसों की वीणा को स्वर दे,

हे वरदायनी ऐसा वरदान दे ||

 

न आकिंचन हो कोई जग में,

तु क्षुधा अब सबके मिटा दे,

प्रेम की ज्योति जला सकू मैं,

एकता अखण्डता सदा रहे,

हे वरदायनी ऐसा वरदान दे ||

©योगेश ध्रुव, धमतरी, छत्तीसगढ़

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