लेखक की कलम से

झीनझीनी बरसात मुबारक…

 

पुस महीनमां फुस हो गेलो

काहे ऐसन बरखा भेलो

सरसो मुरैया लहलहैतो

रब्बिया के तो जान जयतो

बदल रहलो ह भुईयां के रंगबा

कोय नय समझ हकय दुखबा

फूट फूट के रोबय किसनमां

रब्बियो गेलय गेलय धनमां

कयसे बचतय बउआ बबुनी के जनमा

छीना रहलय सभे सपनमां

कोय तो सोचहो कोय विचारहो!

©लता प्रासर, पटना, बिहार

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