लेखक की कलम से

हिन्दी हिन्दुस्तानी …

हिंदी दिवस के उपलक्ष में

 

बन जाए हिन्दी राष्ट्र और जन -जन  भाषा  ।

दयानंद, सावरकर, तिलक की यही आशा ।।

 

सदा से हमारे  राष्ट्र नायकों ने किया प्रयास  ।

हिन्दी हिन्दुस्तानी है तब जगी यह अभिलाष ।।

 

एक छोर से दूसरे छोर तलक बोली जाए ।

गीत प्रेम के मधुर इसमें ही हर जन है गाए ।।

 

समुदाय, प्रान्त ,जातियों में जगाए भाईचारा ।

बिना जिसके लगता हो तन मन यह हारा ।।

 

संस्कृत सब भाषाओं की जननी कहलाती ।

जिससे निकल भाषा बोली  पंख फैलाती ।।

 

देखो हिन्दी की हरियाली दूर दूर लहराए ।

ज्यों पैर में पायल पहन चंचल बाला इतराए ।।

 

हिन्दी हो आसीन यह लीग को स्वीकार नहीं ।

पर हमको भी पसंद उर्दू का व्यवहार नहीं ।।

 

न मुस्लिम रूठे न हिन्दू भाषा दोनों का मेल ।

सत्तारूढ़ कांग्रेस ने रचा था ऐसा तब खेल ।।

 

हिन्दी उर्दू के सम्मिश्रण वाली हो ऐसी भाषा ।

वतन को बांध रखे ऐसी करते है अभिलाषा ।।

 

सुशोभित की गई नागरी उर्दू लिपि लेखनी ।

आज जन जन की भाषा हिंदी हिन्दुस्तानी ।।

 

  ©डॉ मधु त्रिवेदी, आगरा, उत्तरप्रदेश   

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