लेखक की कलम से

ज़िन्दगी

वक़्त

मुठ्ठी में बंद

रेत की तरह

फिसलता जा रहा है

और

ज़िन्दगी का घड़ा

पल – पल

रीत रहा है

लबालब भरे रहने की

चाह में!

©डॉ. विभा सिंह, दिल्ली

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