लेखक की कलम से
ज़िन्दगी
वक़्त
मुठ्ठी में बंद
रेत की तरह
फिसलता जा रहा है
और
ज़िन्दगी का घड़ा
पल – पल
रीत रहा है
लबालब भरे रहने की
चाह में!
वक़्त
मुठ्ठी में बंद
रेत की तरह
फिसलता जा रहा है
और
ज़िन्दगी का घड़ा
पल – पल
रीत रहा है
लबालब भरे रहने की
चाह में!