लेखक की कलम से

हिंदी है सबसे प्यारा…

भाषा मानवजन्म के साथ ही संवाद एवं संचार का माध्यम बन जाती है। जिस तरह शिशु को माँ से परिचय कराने की आवश्यकता नहीं पड़ती। उसी तरह हमें अपनी मातृभूमि और मातृभाषा से अवगत नहीं करवाना पड़ता।

जन्म के साथ ही माँ , मातृभूमि और मातृभाषा से हमारा अन्योन्याश्रय संबंध जुड़ जाता है, इसी तरह राष्ट्र और राष्ट्रभाषा का भी महत्व है।

हमारा देश कई विधाओं का मिश्रण है जहां अनेक भाषाएं बोली जाती है लेकिन अनेकताओं में एकता की एकमात्र भाषा हिंदी है जिसे देशभाषा का गौरव प्राप्त हुआ।

हिंदी राष्ट्र के अवाम द्वारा समझे जानी वाली सबसे सरल, सहज व लोकप्रिय भाषा है, इसलिये गाँधीजी ने इसे जनमानस की भाषा कहा है।

हिंदी को राजभाषा के रुप में स्थापित करने के लिये कई साहित्यकारों का योगदान रहा है जिसमें काका कालेलकर, मैथिली शरण गुप्त, हजारीप्रसाद द्विवेदी, महादेवी वर्मा, सेठ गोंविंददास एवं आदरणीय राजेंद्र सिन्हाजी ने अथक प्रयास किए थे।14 सितंबर1949 में हिंदी को राजभाषा घोषित किया गया।

सरल और समृद्ध भाषा होने के कारण हिंदी का विदेशों में भी प्रभुत्व है।

अंतरराष्ट्रीय स्तर पर हिंदी की महत्ता को बढ़ाने के लिए पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह द्वारा हिंदी दिवस मनाने की घोषणा की गई और सर्वप्रथम नार्वे स्थित दूतावास में हिंदी सम्मेलन दिवस आयोजित किया गया।

जैसा कि उपरोक्त में मैने माँ, मातृभूमि और मातृभाषा के बारे में कहा कि ये किसी परिचय के मोहताज नहीं होते, उसी तरह देशभाषा हिंदी के बारे में कहना चाहूंगी-

बिना हिंदी के आप कितनी भी भाषाएं सीख लो, लिख लो,लेकिन सब अधूरा का अधूरा ही रहेगा क्योंकि बिना स्वभाषा ,राष्ट्रभाषा (हिंदी) के ज्ञान बिन हम अज्ञानी के अज्ञानी ही रह जाएंगे। इसी संदर्भ में भारतेंदु हरिश्चंदजी की पंक्तियां-

अंग्रेजी पढिके जदपि

सब गुण होत प्रवीण

पै निज(हिंदी)भाषा ज्ञान बिन

रहत हीन के हीन।

तो आइये हम अपने हिन्दुस्तां में

हिंदी है सबसे प्यारा का

गीत सब मिलकर शब्दों द्वारा सजाये और इसे जन-जन गाएं।

 

©सुप्रसन्ना झा, जोधपुर, राजस्थान

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