लेखक की कलम से

समकालीन कला उत्सव हिम्मत शाह म्यूजियम में 24 फरवरी तक …

बात चाहे लोक कला की हो या समय के नाव पर सवार आधुनिक कला की बिहार की भूमि सदा से ही कला को लेकर सजग रही है, रग-रग में कला का वास है यहां, यहां आपको विरासत सम्हालते और तराशते कलाकार भी मिल जायेंगे जो आये दिन वैश्विक स्तर पर अपना लोहा मनवाने में सक्षम हैं तो दूसरी ओर कुछ नया करने के जोश और जुनून के साथ सदा के लिए कला को समर्पित हो जाने वाले कलाकार भी। बीता वर्ष जिसे अच्छा वर्ष तो नहीं ही कहा जा सकता, जहां सब कुछ लड़खड़ा सा गया था, कुछ भी अच्छा सा नहीं हो रहा था चारों तरफ गहरा सन्नाटा और डर व्याप्त था ऐसे समय में डूबते को सहारा हुई कला, खूब सृजन हुआ पूरे देश में होता रहा, जो जहां था वहीं से लगन के साथ अपने कलाकर्म में लगा रहा, यहां भी। बिहार पहले की तरह ही सक्रिय रूप से अपनी सहभागिता निभाता रहा।

अब जब सब कुछ सामान्य की तरफ बढ़ता हुआ नज़र आ रहा है बिहार फिर से कुछ नया करने की ओर अग्रसर है और इसका जीता जागता उदाहरण है हिम्मत शाह म्युजियम पटना जिसकी स्थापना 17 एकड़ के विशाल जगह में हुई है। जिसके सफलता के पीछे सहृदयी, हिम्मती, मुसीबतों से न डिगने वाले बटवृक्ष के छाया नियन शीतलता प्रदान करने की सोच रखने वाले अंजनी कुमार सिंह का हाथ है उनके बारे में खुद हिम्मत शाह के शब्द देखें-” अंजनी सिंह बहुत बहादुर हैं, कैसी भी आंधी-तूफान आने पर भी नहीं डरते हैं और कहते हैं यह आपको और ऊंचा ले जाने हेतु आती है।

हिम्मत शाह म्यूजियम जहां 18 फरवरी से शुरू होकर 24 फरवरी तक नेशनल वर्कशॉप का आयोजन बड़े विशाल स्तर पर होने जा रहा है जो निश्चित ही कला का महाकुंभ साबित होगा। देश और विदेश में अपने कला से लोहा मनवा चुके देश के दस शीर्षस्थ कलाकार, जतिन दास, वी. नाग दास, एस प्रणाम सिंह, अतिन बसाक, अलाप शाह, चंद्र भूषण श्रीवास्तव, इंद्राणी आचार्य, उमेंद्र पी. सिंह, मानती शर्मा तथा सुनील विश्वकर्मा इस वर्कशॉप में हिस्सा ले रहे हैं।

ओडिशा में जन्में तथा सर जे.जे. स्कूल आफ आर्ट मुंबई से कला में शिक्षा ग्रहण करने वाले वरिष्ठ कलाकार जतिन दास पेरिस और वेनिस विनाले जैसे प्रदर्शनियों में अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करा चुके हैं। आपके बनाये चित्र स्ट्रोक रंग भाव हर पक्ष से समृद्ध है जबकि समृद्धि को लेकर आपके विचार एकदम से भिन्न है जयपुर आर्ट समिट के अपने वार्ता में आपके विचार कलाकार शब्द के गहराई को उजागर करने में पूर्णतः सफल हुए और आपके कला को समझ पाने हेतु दर्शक को आइना भी सिद्ध हुए हैं आप कहते हैं-

“मैं चित्रकार हूं, कलाकार बनना चाहता हूं,

कलाकार बनने हेतु बचपना चाहिए, जिज्ञासा चाहिए, शोध चाहिए और अंत में कहें तो दो तीन जन्म चाहिए”।

सृजन निश्चित रूप से योग है भोगते हुए सृजन करना बाजारवाद को बढ़ावा दे सकता है पर फिलहाल वक्त कुछ अलग है‌। द जर्नी आफ इंडिया मोहनजोदड़ो टू महात्मा गांधी भी आपके उपलब्धि में शुमार है। आप कला के बाजारीकरण से बहुत ही दुखी हैं।

केरला तथा शांति निकेतन से अपनी कला शिक्षा पूरी करने वाले कलाकार वी. नाग दास की कलाकृतियां कनाडा, यू.एस.ए. तथा दुबई आदि जैसे जगहों पर प्रर्दशित हो चुकी हैं। वी. नाग दास देश के प्रख्यात चित्रकार एवं प्रिंट मेकर है आपकी कलाकृतियां सीधे दर्शकों से संवाद करने पर उतारू हो जाती हैं आपके चित्र वर्णनात्मक शैली में होते हुए भी आधुनिकता की जद को पार कर गये हैं। आपके रंग, आकृतियों के परिप्रेक्ष्य, आकार, भाव-भंगिमा, लोच में गज़ब का संयोजन है।

छाया प्रकाश, नीले रंगों का जादुई प्रयोग, आंखों में भावों का सागर, समृद्ध संस्कारवान भारतीय जनमानस के खुशहाल परिवेश या फिर यौवन का संस्कारिक रूप हमें जिन कलाकार के कृतियों में स्पष्टत: झलकता है वो होते हैं एस. प्रणाम सिंह जो अभी लाकडाउन में लगातार चारकोल से खेलते रहे और लगातार एक से बढ़कर एक कृतियों का सृजन करते रहें कला के वर्तमान दुनिया में आप लगभग सभी कलाप्रेमीं के चहेते कलाकार हैं। आपके चित्र छत्तीसगढ़ी सुंदरता, भारतीय सुंदरता जैसे शीर्षक से सजे होते हैं, ग्रामीण परिवेश, ग्रामीण सौंदर्य आपकी विशेषता है आपके चित्रों से दर्शक तुरंत जुड़ाव महसूस करने लगता है।

प्रिंटमेकर कलाकार गुजरात तथा बंगाल से जुड़ाव रखने वाले कलाकार अतिन बसाक की कला समकालीन परिदृश्य में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाती हुई सी प्रतीत हुई है। आप प्रिंटमेकिंग में लगातार सक्रिय रूप से लगे हुए हैं और निरंतर अच्छा कर रहे हैं

गाजीपुर उ.प्र. को कला के क्षेत्र में अच्छी पहचान दिलाने वाले कलाकार चंद्रभूषण श्रीवास्तव की कला उनकी ही तरह बिल्कुल ही शान्त अवस्था में होते हुए भी अपने संचार शक्ति को सार्थकता में तब्दील कर देने में माहिर हैं। आप शान्त वातावरण और सुकून परस्त कलाकार हैं आपकी कृतियां रंगों के शान्त सागर को खुद में आत्मशात करने में माहिर है बारीक रेखायें कृतियों की शोभा है, अंधेरे में भी सौंदर्य की तलाश है आपकी कृतियां।

इंद्राणी आचार्य (कोलकाता) युवा कलाकारों में काफी अच्छा कर रही हैं, कलाकृतियों को जीवंत बनाने हेतु कृतियों के साथ-साथ प्रकृति को भी बहुत ही सलीके से सजाने का कार्य करती हैं, आपकी कृतियां इंस्टालेशन के बेहद करीब से होकर गुजरती है, उमेंद्र पी. सिंह (लखनऊ) श्वेत-श्याम रंग को बड़े ही तन्मयता के साथ सहेजते हैं और स्पेस के सफेद भाग को अपने कृति के अनुसार ढाल लेने में माहिर भी हैं, अलाप शाह जैसे समकालीन कलाकार इस कैम्प की उपलब्धि माने जा सकते हैं। कलाकार मानती शर्मा वाराणसी की कृतियां लोक शैली के ज्यादा नजदीक है आपकी रचना धर्मिता आपके कला को और अधिक समृद्धि की ओर ले जाती है, बड़ी-बड़ी आंखें, चटख रंग, बारीक रेखायें, घने अंधकार से प्रकाश की ओर आती आकृतियां, पंखों युक्त परी के समान उड़ने को आतुर चित्र मानती शर्मा के अंदर के स्वप्नों के उड़ान को दर्शाती हैं जहां मानती शर्मा स्वप्नलोक में बिचरते हुए ऐसे जगह पहुंच जाना चाहती हैं जो एक विशेष नगर हो जहां पलक झपकते ही कहीं भी पहुंच जाने की आजादी हो मानती शर्मा समाज में स्त्रियों पे लगी बंदिशों को अपने कृतियों के माध्यम से सभी के सामने बड़े ही सजग तरीके से रखती हैं, आपके कृतियों में सादगी है, समाज है, देहात का भोलापन है, अकादमिक मकड़जाल से स्वतंत्र तकनीक, रंगों का खुलापन है।

कलाकार सुनील विश्वकर्मा (वाराणसी) देश ही नहीं बल्कि वैश्विक स्तर पर अपने कृतियों के माध्यम से एक अलग ही पहचान बना पाने में सफल हुए हैं आपके यथार्थपरक चित्रों में गज़ब का सम्मोहन है, चेहरे पर का तेज, परफेक्ट एनाॅटामी, कोमल रंगों का सामंजस्य, सधा हुआ स्ट्रोक कुल मिलाकर अगर यह कहा जाय कि आपके कृतियों में सम्पूर्णता का भान होता है तो कहीं से भी गलत नहीं होगा। पटना में आयोजित ये कैम्प कोरोना के बाद के समय का, कला के लिए हमेशा के लिए याद किया जाने वाला समय माना जायेगा।

 

©पंकज तिवारी, नई दिल्ली

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