लेखक की कलम से

सरस्वती वंदना …

विधा-दोहे

ज्ञानदायिनी शारदे, नमन हजारों बार।

बार बार विनती करूँ, दोनो हाथ पसार।।

 

नहीं जानती ताल-लय, नहीं जानती राग।

हूँ मैं अज्ञानी निपट, माँगू बस अनुराग।।

 

सरसवती माँ शारदे, इतना दो वरदान,

मेधावी मुझको करो, मैं तो हूँ नादान।।

 

भरो मधुरता कंठ में, स्वर में दो झंकार।

माता मेरी वन्दना, कर लेना स्वीकार।।

 

©स्वर्णलता टंडन

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