लेखक की कलम से

बचपन की ओर लौट जा …

 

सुबह-शाम की दौड़ को छोड़

तू बचपन की ओर लौट जा

तू बचपन की ओर लौट जा

 

सपनों के पीछे भी दौड़ा

अपनों के पीछे भी दौड़ा

पर अब बचपन की ओर लौट जा

मां के आंचल को एक बार

फिर से थाम ले

तू बचपन की ओर लौट जा

 

छोटी-छोटी पगडंडी पर चलकर

तू खेतों की ओर दौड़ जा

तू बचपन की ओर लौट जा

 

तू कोयल के पीछे कु-कू करता

तू पनघट की ओर दौड़ जा

तू बचपन की ओर लौट जा

तू जुगनू के पीछे भागे और

छत की मुंडेर पर लौट जा

 

तू बचपन की ओर लौट जा

तू बचपन की ओर लौट जा

 

©कांता मीना, जयपुर, राजस्थान                 

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