लेखक की कलम से

और कहां गिर कर पहुंचोगे …

 

और कहां गिर कर पहुंचोगे

राजनीति चमकाने में

नर से पिशाच बने हो तुम

अपनी हसरत चमकाने में।।

 

किसान पिसा अपनी चक्की में

तुम झूठ मूठ मरहम क्यों लगा रहे

उसके एकल साधन को तुम

रोड पर ही चला रहे ।।

 

ना इसके दुख से तुमको मतलब

ना कोई अवसाद है

तुमको तो बस अपनी राजनीति

चमकाने का दरकार है ।।

 

उसके चूल्हे में आग नहीं

तुम घर भी उसका जला रहे

अपनी धूमिल राजनीति को

बस उससे ही चमका रहे ।।

 

और कहां गिर कर पहुंचोगे

राजनीति चमकाने में

नर से पिशाच बने हो तुम

अपनी हसरत चमकाने में ।।

 

दमन हो रहा अधिकार किसी का

कोई मुंह ढककर है रो रहा

आवाज नहीं पहुंचता कानो तक

क्या कान से भी तुम बहरा हो गया ।।

 

तुम उड़ो आकाश में

उड़न खटोला लेकर आप

आमजन रोड चल रहा

तपती सर्दी और बरसात ।।

 

दया नहीं इन निरीह मानुष पर

जो भूख से है बिलख रहा

तुमको तो राजनीति से मतलब

अपना ही फायदा साध रहा ।।

 

और कहां गिर कर पहुंचोगे

राजनीति चमकाने में

नर से पिशाच बने हो तुम

अपनी हसरत चमकाने में ।।

 

अत्याचार हो रहा नारी जाति पर

उस पर भी तुम करते राजनीति

उल्टे सीधे बयान दाग कर

उस पर करते राजनीति ।।

 

इतने पर भी संतोष नहीं

तुम उस पर करते राजनीति

गुर्गों को भी वहां बैठाते

उस पर करते राजनीति ।।

 

जातीय हिंसा फैलाना तेरा मकसद ,

इरादे तेरे है नापाक

बोलो जनता कैसे चुने तुझे

तुम्हारा ना कोई राजनीतिक आधार ।।

 

और कहां गिर कर पहुंचोगे

राजनीति चमकाने में

नर से पिशाच बने हो तुम

अपनी हसरत चमकाने में ।।

 

©कमलेश झा, फरीदाबाद                       

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