लेखक की कलम से
कृष्णा…
कृष्णा की तृष्णा में मन जलता जैसे।
सागर नदियों से जाकर मिलता जैसे।
जोगन बोले आँगन मेरे आ जाओ।
सूरज धरती को छूने आता जैसे।
हठ है मेरी तुमको ही आना होगा।
कूप घड़े को ऊपर आ भरता जैसे।
मछली तड़पे बिन पानी तो क्या अचरज।
तड़पे पानी मछली बिन मरता जैसे।
सब कुछ संभव है माधव तेरे सजदे।
घुल अंतर में चीनी जल घुलता जैसे।
©श्रद्धान्जलि शुक्ला, कटनी, मध्य प्रदेश