लेखक की कलम से
चौपाई …
वृक्षारोपण
वृक्षारोपण पर्व मनाते ।
हरियाली की कसमें खाते।।
एक दिवस की है ये बातें ।
निज बातों को फिर दफनातें।।1
गला घोंटता अपना मानव।
कर्मों से लगता है दानव।।
चार दिवस सुख सुविधा खातिर।
क्यों पापी बन गया मुसाफिर।।2
जो करती है सबका पोषण।
वृक्ष काट हम करते शोषण।।
क्यों कठिन कुठार चलाते हैं।
कैसा संबंध निभाते है ।। 3
कैसे बरसात बुलाओगे ।
कैसे जग प्यास बुझाओगे।।
क्या खुशहाली हरियाली बिन।
रात कटें फिर तारे गिन-गिन ।।4
वृक्ष स्वास का है आधारा ।
करें दया निज पर उपकारा।।
वृक्ष लगायें पुण्य कमायें ।
मनुज जन्म को धन्य बनायें।।5
वर्षा ऋतु देखो निअराई ।
वृक्षारोपण है सुखदाई । ।
देखभाल वृक्षों का करके।
जियें जगत में भी हम मरके।।6
©रानी साहूरानी, मड़ई (खम्हरिया)