लेखक की कलम से

गजराज …

 

कहलाते ये गजराज हैं

चलता इनका राज है

मदमस्त इनकी चाल है

बैठते इनपर महाराज हैं।

 

न जाने क्यों है अब दशा यह इनकी

मिलती ख़बर प्रत्येक दिन एक गजराज की

वन में होता न अब वास इनका

गांव और खेतों में ढूंढे चारा यह खुदका।

 

प्रकृति से कर रहे खिलवाड़ मानव

सज़ा मिल रही बेजुबान को इसका

दर – दर भटक रहे अब यह देखो

खो रहे यह अस्तित्व हैं देखो।

 

समझो इनकी अहमियत हे मानव

हैं बहुत ही मूल्यवान ये हस्ती

करते उद्धार यह सबकी

बढ़ते इससे शोभा वन की।

 

कभी शिकारी का शिकार बनते

कभी समय की चक्रव्यूह में फंस जान गंवाते

कभी प्रकृति का कराल रूप देख

अपनी सांसे बंद कर देते।

 

©डॉ. जानकी झा, कटक, ओडिशा                                  

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