काश कि वह भूल जाए …
बड़ी बेतरतीब सी है वो ..
बड़ी लापरवाह सी है वो ..
कहीं ना कहीं, कुछ ना कुछ
रखकर भूल जाती है अक्सर।
हैरान परेशान सी भटकती है
खंगालती दिखती है सारा घर।
भूल जाती है गुलंबर पर रख
अल्हड़ से सपने,ख्वाब सारे
भूल जाती है,अपमान हर बार।
झोंक देती है उम्मीदें चूल्हे में
खुशियों के बहाने खोजती है।
कभी बच्चों में कभी साथी में
मुस्कान को भी भूल जाती है।
घर के किसी कोने में रखकर
जिम्मेदारियाों के चक्रव्यूह में
ऐसी उलझती है वह हर रोज
कि पल पल भूलती जाती है
खुद को..अपनी पहचान को।
यह सब तो हर रोज भूलती है..
पर क्यों नहीं भूलती वह
दूसरों की सारी खुशियाँ
सर ओढ़ी जिम्मेदारियां,
आँसुओं को आँखों में छिपाना,
हँसकर सब टाल जाना..
विष बुझे तीर से ताने,
उपेक्षा और मंद उलाहने
अन्मयस्क सी उम्मीदें,
रंग बदलती खुशियों के पैमाने।
काश कि वह भूल जाए
एक दिन के लिए ही सही..
दूसरों के बारे में सोचना।
गलतफहमी के गुब्बारे
उड़ाकर हवा में भूल जाए।
जिम्मेदारी की पोटली कहीं
गुमाकर वह भूल जाए..।
हँसी पर लगी बंदिशों को
याद रखना भूल जाए।
नाप तौल कर खुश होना
काश कभी वह भूल जाए।
चुपके चुपके गमों को
संजोना छुपाना भूल जाए।
संगीत की लय पर थिरकती,
पाँव थकना भूल जाए।
ख़्वाबों के पंखों पर उड़ती,
रुकना थमना भूल जाए।
©भारती शर्मा, मथुरा उत्तरप्रदेश