लेखक की कलम से
दीपक बुझने से पहले …
छंदमुक्त
#लौट के आजा
जलाए लौ बैठी हूँ,
मै विश्वास की ।
आजा, वापिस,
मेरी आँखों के तारे।
मेरे राजदुलारे।
अपना वादा निभाने।
कहता था तू,
“माँ! देश अपना सुन्दर है।
हो यहाँ आप, बाबूजी, छुटकी ।
छोटा सा प्यारा परिवार है अपना
माँ! कुछ दिनों के लिए ही जाना। ।
लौट आऊँगा, कमा कर पैसा ढेर सा।
पर तू आया नहीं अभी तक?
किसके लिए कमायेगा पैसा इतना?
बाबूजी की लाठी
छुटकी की राखी
और मेरा लाल बनकर
जल्दी तू आजा
दीपक मे तेल कम है।
आजा, लौ बुझने से पहले।
अँधियारा होने से पहले।
©रागिनी गर्ग, रामपुर, यूपी