लेखक की कलम से

कर्म किया कोई बुरा, भोग रहे सब लोग …

दोहे

 

कर्म किया कोई बुरा, भोग रहे सब लोग ।

मांसाहारी बन दिए, कोरोना का रोग ।।

 

दुर्लभ नर तन पाइके, करते अत्याचार ।

नर का भोजन शाक है, लेतें मांसाहार ।।

 

मृत्यु बाँटता फिर रहा, बन कोरोना काल ।

जग में संकट छा गया, देखें अपनी चाल ।।

 

साबुन से सब धोइए, बार – बार निज हाथ ।

चार-दिवारी में रहें, शासन का दें साथ ।।

 

कोरोना का कहर है, नगर-नगर अरु गाँव ।

हमें सुरक्षित रख सके, अपने घर की छाँव ।।

 

उड़ने को आकाश में, हैं बालक बेचैन ।

उदास ये साथी बिना, कैद लगे दिन-रैन ।।

©श्रीमती रानी साहू, मड़ई (खम्हारिया)

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